उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल 49
नज़्म 16
अशआर 48
अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाए
अब इस क़दर भी न चाहो कि दम निकल जाए
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एक चेहरे में तो मुमकिन नहीं इतने चेहरे
किस से करते जो कोई इश्क़ दोबारा करते
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कल मातम बे-क़ीमत होगा आज उन की तौक़ीर करो
देखो ख़ून-ए-जिगर से क्या क्या लिखते हैं अफ़्साने लोग
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ख़ुर्शीद मिसाल शख़्स कल शाम
मिट्टी के सुपुर्द कर दिया है
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बोले नहीं वो हर्फ़ जो ईमान में न थे
लिक्खी नहीं वो बात जो अपनी नहीं थी बात
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पुस्तकें 5
चित्र शायरी 25
लाखों शक्लों के मेले में तन्हा रहना मेरा काम भेस बदल कर देखते रहना तेज़ हवाओं का कोहराम एक तरफ़ आवाज़ का सूरज एक तरफ़ इक गूँगी शाम एक तरफ़ जिस्मों की ख़ुशबू एक तरफ़ उस का अंजाम बन गया क़ातिल मेरे लिए तो अपनी ही नज़रों का दाम सब से बड़ा है नाम ख़ुदा का उस के बाद है मेरा नाम
वीडियो 46
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