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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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सलमान अख़्तर

ग़ज़ल 24

अशआर 29

अपनी आदत कि सब से सब कह दें

शहर का है मिज़ाज सन्नाटा

ऐसा नहीं कि उन से मोहब्बत हो मगर

पहले सा जोश पहले सी शिद्दत नहीं रही

कोई शय एक सी नहीं रहती

उम्र ढलती है ग़म बदलते हैं

जो बात छुपाई है सब से वो उन से छुपानी मुश्किल है

बाहर की कहानी आसाँ है अन्दर की कहानी मुश्किल है

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वो एक ख़्वाब जो फिर लौट कर नहीं आया

वो इक ख़याल जिसे मैं भुला नहीं सकता

पुस्तकें 4

 

ऑडियो 7

कहो तो आज बता दें तुम्हें हक़ीक़त भी

ख़्वाबों के आसरे पे बहुत दिन जिए हो तुम

जागते में भी ख़्वाब देखे हैं

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