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शकील आज़मी

1971 | मुंबई, भारत

शायर और फ़िल्म गीतकार

शायर और फ़िल्म गीतकार

शकील आज़मी

ग़ज़ल 109

नज़्म 25

अशआर 24

हार हो जाती है जब मान लिया जाता है

जीत तब होती है जब ठान लिया जाता है

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अपनी मंज़िल पे पहुँचना भी खड़े रहना भी

कितना मुश्किल है बड़े हो के बड़े रहना भी

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मैं सो रहा हूँ तिरे ख़्वाब देखने के लिए

ये आरज़ू है कि आँखों में रात रह जाए

ख़ुद को इतना भी मत बचाया कर

बारिशें हों तो भीग जाया कर

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जाने कैसा रिश्ता है रहगुज़र का क़दमों से

थक के बैठ जाऊँ तो रास्ता बुलाता है

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क़ितआ 1

 

पुस्तकें 7

 

चित्र शायरी 1

 

वीडियो 7

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

शकील आज़मी

शकील आज़मी

झूटी मोहब्बत

तुम्हारा मैं हूँ मिरे तुम हो अच्छे जुमले हैं शकील आज़मी

दूसरे दर्जे की पिछली क़तार का आदमी

गोश्त मछली सब्ज़ियाँ बनिए का राशन दूध घी शकील आज़मी

नई आस्तीन

न मेरे ज़हर में तल्ख़ी रही वो पहली सी शकील आज़मी

परों को खोल ज़माना उड़ान देखता है

शकील आज़मी

हर घड़ी चश्म-ए-ख़रीदार में रहने के लिए

शकील आज़मी

ऑडियो 4

हर घड़ी चश्म-ए-ख़रीदार में रहने के लिए

झूटी मोहब्बत

दूसरे दर्जे की पिछली क़तार का आदमी

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