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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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शीन काफ़ निज़ाम

1947 | जोधपुर, भारत

महत्वपूर्ण उत्तर-आधुनिक शाइर, साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित

महत्वपूर्ण उत्तर-आधुनिक शाइर, साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित

शीन काफ़ निज़ाम

ग़ज़ल 35

नज़्म 11

अशआर 32

चुभन ये पीठ में कैसी है मुड़ के देख तो ले

कहीं कोई तुझे पीछे से देखता होगा

गली के मोड़ से घर तक अँधेरा क्यूँ है 'निज़ाम'

चराग़ याद का उस ने बुझा दिया होगा

तू अकेला है बंद है कमरा

अब तो चेहरा उतार कर रख दे

ऊँची इमारतें तो बड़ी शानदार हैं

लेकिन यहाँ तो रेन-बसेरे थे क्या हुए

मंज़र को किसी तरह बदलने की दुआ दे

दे रात की ठंडक को पिघलने की दुआ दे

दोहा 4

याद आई परदेस में उस की इक इक बात

घर का दिन ही दिन मियाँ घर की रात ही रात

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हम 'कबीर' इस काल के खड़े हैं ख़ाली हाथ

संग किसी के हम नहीं और हम सब के साथ

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मन रफ़्तार से भागता जाता है किस ओर

पलक झपकते शाम है पलक झपकते भोर

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मन में धरती सी ललक आँखों में आकाश

याद के आँगन में रहा चेहरे का प्रकाश

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पुस्तकें 29

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