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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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विपुल कुमार

1993 | गुड़गाँव, भारत

समकालीन नौजवान शायरों सें नुमायाँ

समकालीन नौजवान शायरों सें नुमायाँ

विपुल कुमार

ग़ज़ल 24

अशआर 23

अब के मसरूफ़ियत-ए-इश्क़ बहुत है हम को

तुम चले जाओ तो फ़ुर्सत से गुज़ारा कर लें

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झील किनारा शांत पवन और हम दोनों

इक लम्हे का ख़ाली-पन और हम दोनों

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दिलों पे दर्द का इम्कान भी ज़ियादा नहीं

वो सब्र है अभी नुक़सान भी ज़ियादा नहीं

हमीं ने हश्र उठा रक्खा है बिछड़ने पर

वो जान-ए-जाँ तो परेशान भी ज़ियादा नहीं

हर मुलाक़ात पे सीने से लगाने वाले

कितने प्यारे हैं मुझे छोड़ के जाने वाले

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