ज़फ़र गोरखपुरी
ग़ज़ल 29
नज़्म 2
अशआर 20
देखें क़रीब से भी तो अच्छा दिखाई दे
इक आदमी तो शहर में ऐसा दिखाई दे
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नहीं मालूम आख़िर किस ने किस को थाम रक्खा है
वो मुझ में गुम है और मेरे दर ओ दीवार गुम उस में
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फ़लक ने भी न ठिकाना कहीं दिया हम को
मकाँ की नीव ज़मीं से हटा के रक्खी थी
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शायद अब तक मुझ में कोई घोंसला आबाद है
घर में ये चिड़ियों की चहकारें कहाँ से आ गईं
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दोहा 6
गीत 1
पुस्तकें 9
चित्र शायरी 4
वीडियो 27
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