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प्रमुखतम आधुनिक शायरों में विख्यात/नई दिशा देने वाले शायर

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ज़फ़र इक़बाल

ग़ज़ल 137

अशआर 161

उठा सकते नहीं जब चूम कर ही छोड़ना अच्छा

मोहब्बत का ये पत्थर इस दफ़ा भारी ज़ियादा है

चेहरे से झाड़ पिछले बरस की कुदूरतें

दीवार से पुराना कैलन्डर उतार दे

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तुम ही बतलाओ कि उस की क़द्र क्या होगी तुम्हें

जो मोहब्बत मुफ़्त में मिल जाए आसानी के साथ

रास्ते हैं खुले हुए सारे

फिर भी ये ज़िंदगी रुकी हुई है

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हम इतनी रौशनी में देख भी सकते नहीं उस को

सो अपने आप ही इस चाँद को गहनाए रखते हैं

हास्य शायरी 4

 

शायरी के अनुवाद 1

 

पुस्तकें 29

चित्र शायरी 33

वीडियो 23

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हास्य वीडियो

ज़फ़र इक़बाल

Bashir Badr at International Mushaira 2002, Houston

Dr. Basheer Badr reciting at International Mushaira 2002 organised by Aligarh Alumni Association Houston USA ज़फ़र इक़बाल

Bashir Badr reciting at Hind-o-Pak Dosti Aalmi Mushaira 2003, organized by Aligarh Alumni Association Houston, USA.

ज़फ़र इक़बाल

यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो

ज़फ़र इक़बाल

लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में

ज़फ़र इक़बाल

ऑडियो 15

अभी आँखें खुली हैं और क्या क्या देखने को

कब वो ज़ाहिर होगा और हैरान कर देगा मुझे

ख़ुशी मिली तो ये आलम था बद-हवासी का

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