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हयात-ओ-मर्ग का उक़्दा कुशा होने नहीं देता

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

हयात-ओ-मर्ग का उक़्दा कुशा होने नहीं देता

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

MORE BYराम अवतार गुप्ता मुज़्तर

    हयात-ओ-मर्ग का उक़्दा कुशा होने नहीं देता

    वो जाने क्यूँ मुझे राज़-आश्ना होने नहीं देता

    उसे किस दर्जा अपने हुस्न-ए-यकताई की चाहत है

    वो अपना सा कोई भी दूसरा होने नहीं देता

    ख़िरद भटकाए है अक्सर दलाएल से अक़ीदत को

    मगर गुमराह तेरा नक़्श-ए-पा होने नहीं देता

    जो छू लूँ आसमाँ पाँव की धरती खींच लेता है

    वो मुझ को क्यूँ मिरे क़द से बड़ा होने नहीं देता

    जवाँ-लाशे पे हैं शिकवा-ब-लब काँधे ज़ईफ़ी के

    अगर वो चाहता ये हादिसा होने नहीं देता

    स्रोत :
    • पुस्तक : Seepiyon Mein Samandar (Poetry) (पृष्ठ 63)
    • रचनाकार : Ram avtar gupta ''muztar''
    • प्रकाशन : Takhleeqkar Publishers (2009)
    • संस्करण : 2009

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