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झूटी ही तसल्ली हो कुछ दिल तो बहल जाए

फ़ना निज़ामी कानपुरी

झूटी ही तसल्ली हो कुछ दिल तो बहल जाए

फ़ना निज़ामी कानपुरी

MORE BYफ़ना निज़ामी कानपुरी

    झूटी ही तसल्ली हो कुछ दिल तो बहल जाए

    धुंदली ही सही लेकिन इक शम्अ तो जल जाए

    इस मौज की टक्कर से साहिल भी लरज़ता है

    कुछ रोज़ तो तूफ़ाँ की आग़ोश में पल जाए

    मजबूरी-ए-साक़ी भी तिश्ना-लबो समझो

    वाइज़ का ये मंशा है मय-ख़्वारों में चल जाए

    जल्वा-ए-जानाना फिर ऐसी झलक दिखला

    हसरत भी रहे बाक़ी अरमाँ भी निकल जाए

    इस वास्ते छेड़ा है परवानों का अफ़्साना

    शायद तिरे कानों तक पैग़ाम-ए-अमल जाए

    मय-ख़ाना-ए-हस्ती में मै-कश वही मै-कश है

    सँभले तो बहक जाए बहके तो सँभल जाए

    हम ने तो 'फ़ना' इतना मफ़्हूम-ए-ग़ज़ल समझा

    ख़ुद ज़िंदगी-ए-शा'इर अशआ'र में ढल जाए

    स्रोत :
    • पुस्तक : urdu kii chunii hu.ii gazale.n (पृष्ठ 39)
    • रचनाकार : devendra issar
    • प्रकाशन : sahityaa parkaashak maalbaara delhi (1963)
    • संस्करण : 1963

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