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काम उस के लब से है मुझे बिंत-उल-इनब से क्या

मीर तक़ी मीर

काम उस के लब से है मुझे बिंत-उल-इनब से क्या

मीर तक़ी मीर

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    काम उस के लब से है मुझे बिंत-उल-इनब से क्या

    है आब-ए-ज़ि़ंदगी भी तो ले जाए मुर्दा-शो

    व्याख्या

    कुछ समझने से पहले सिर्फ़ लफ़्ज़ों का मतलब समझ लेते हैं जिस से ज़रा आसानी रहेगी।

    बिन्त उल इनब - शराब, अंगूर से बना पेय

    मुर्दा शो - जो मुर्दों को नहलाने का काम करते हैं

    तो अब इस शे'र का सीधा सा मतलब तो ये होगा कि

    उसके लब से हमें काम है, हमें शराब से कोई मतलब नहीं है, वो यानी शराब अगर आब ज़िन्दगी (ज़िन्दगी देने वाला पानी) भी अगर हो तो जो मुर्दों को ग़ुस्ल देने वाले हैं वो आएं और ले जाएं।

    अब यहाँ तो हमें मतलब समझ में आया लेकिन शे'र की कारीगरी सिर्फ़ पूरे शे'र के मतलब तक नहीं होती है, उसके अंदर कई ऐसी और चीज़ें होती हैं जो उसकी ख़ूबसूरती बढ़ाती हैं वरना शे'र में ऐसी कोई अनोखी बात नहीं कही गयी है। हमें शराब नहीं उसके लब चाहिए, शराब अगर ज़िन्दगी देने वाला पानी भी है तो मुर्दा धोने वाले आएं और ले जाएं, और इस से मुर्दों को ज़िंदा कर लें, हमें कोई मतलब नहीं इस से. अब इसमें ऐसा क्या ख़ास है?

    ख़ास है इसका वर्ड प्ले, वर्ड प्ले समझने के लिए एक बार मुर्दा शो के बारे में जान लेते हैं, मुर्दा शो या ग़ुस्साल का पेशा हिक़ारत की नज़र से देखा जाता है/था, तो ये कहावत बनी कि मुर्दा शो बुर्दा! ये फ़ारसी का जुमला/कहावत है, ये एक तरह की बद्दुआ है, जैसे हम कहते हैं भाड़ में जाइए उसी तरह मुर्दा शो बुर्दा वाले उन चीज़ों/लोगों को जो उन्हें पसंद आएं, कहते हैं जा तुझे मुर्दा धोने वाले ले जाएं! गोया वो इतना तुच्छ या नापसंदीदा है कि मुर्दे नहलाने वाले उठा के ले जायें उसे।

    अब अगर शे'र में मान लीजिए कि लब की तुलना में बिन्तुल इनब के बजाये कोई और लफ़्ज़ आता, मसलन कोई फूल और उसे कहा जाता कि वो फूल किसी नायाब पत्थर जैसे अक़ीक़ यमनी (पारस पत्थर की तरह का एक क़ीमती पत्थर) से भी ज़्यादा क़ीमती है तो भी इसे मुर्दा धोने वाले ले जाएं, मुहावरा तो तब भी सही इस्तिमाल हो जाता कि उसके लब से हमें काम है बाक़ी कोई चीज़ कितनी ही हसीन या क़ीमती हो उसा मुर्दा धोने वाले जायें या वो भाड़ में झोंकी जाये हमें क्या मतलब!

    लेकिन इसमें वो बात कहाँ है ?

    आब ज़िन्दगी को मुर्दा शो को देने में, एक तो हमने शराब को हमारे लिए इतना ग़ैर ज़रूरी बता दिया कि उसे मुर्दा धोने वाले ले जाएं (यहाँ तक मुहावरा काम कर रहा है कि भाड़ में जाए शराब) लेकिन शराब को हमने आब ज़िन्दगी कह कर फिर मुर्दा शो को दिया है, यानी मुर्दा धोने वाले उसके ज़रिये मुर्दों में जान डाल सकते हैं, तो उनके लिए तो ये बेशक़ीमत चीज़ हो गयी और उसके लब के सामने शराब के लिए हमारी हिक़ारत दर अस्ल हमारी अच्छाई भी ला रही है। यहाँ मुहावरा केवल अपने मुहावरी मतलब में इस्तेमाल हो रहा है बल्कि उसका एक प्रैक्टिकल मतलब भी निकल रहा है। वो भाड़ में जाये और मुर्दे ज़िंदा किये जायें दोनों मतलब पूरी तरह शेर में मौजूद हैं।

    दूसरी चीज़, इस शे'र के मिसरों में शायर का मिज़ाज बेख़ुद और ख़ुद गर्ज़ दोनों है, एक तरफ़ उसे बस उसके लबों से काम है, उसके लिए उसके लब ही मक़सद हैं हालाँकि ये नहीं खोला गया है कि किसलिए, क्या शायर लब निहारना चाहता है, उन्हें छूना चाहता है, नहीं, वो क़यास पढ़ने वाला लगाता रहे, उसका (शायर) मुद्दा ही लब हैं।

    तो यहाँ उसे इतनी ख्वाहिश है और दूसरे ही मिसरे में वो ऐसा बेख़ुद है कि उसे आब ज़िन्दगी यानी एक तरह से दुनिया की सबसे क़ीमती चीज़ भी नहीं चाहिए, वो चाहे तो मुर्दा धोने वाले ले जा सकते हैं।

    तो ये है इस शे'र की कहानी और उस्ताद मीर तक़ी मीर की कारीगरी!

    प्रियंवदा सिंह

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