तेज़ होती जा रही है किस लिए धड़कन मिरी
तेज़ होती जा रही है किस लिए धड़कन मिरी
हो रही है रफ़्ता रफ़्ता आँख भी रौशन मिरी
ज़ेहन के ख़ानों में जाने वक़्त ने क्या भर दिया
बे-सबब होने लगी इक एक से अन-बन मिरी
जैसे जैसे गुत्थियों की डोर हाथ आती गई
कुछ इसी रफ़्तार से बढ़ती गई उलझन मिरी
ऐसा लगता है कि मेरी साँस फिर घुट जाएगी
फिर अना की नोक पर उठने लगी गर्दन मिरी
क्या कोई साया तुलू होने लगा है फिर इधर
फिर से क्यूँ होने लगी है दूधिया चिलमन मिरी
- पुस्तक : Aank Mein Luknat (पृष्ठ 86)
- रचनाकार : Ghazanfar
- प्रकाशन : Maktaba Jamia Ltd. (2015)
- संस्करण : 2015
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