दास्तान-ए अमीर हम्ज़ा
उर्दू दास्तान या रोमांस की परंपरा वीरगाथाओं और रासलीलाओं , जादू -टोने और चालबाज़ी की आश्चर्यचकित कर देने वाली घटनाओं से बनी है। एक दास्तान जिसका भारत में हमेशा बोलबाला रहा है वह है दास्तान -ए -अमीर हम्ज़ा। इसके नायक अमीर हम्ज़ा का विस्तृत उल्लेख सम्राट अकबर के हम्ज़ा-नामा में मिलता है जिसे पढ़कर ऐसा लगता है जैसे अकबर स्वयं भी इन दास्तानों को पसंद करता था और हरम में अपनी बेगमों को सुनाया करता था। ये कथाएं जैसे-जैसे हिन्द-फ़ारसी से उर्दू में दाख़िल होती गईं इनकी लोकप्रियता में वृद्धि होती गई। उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में मौखिक दास्तान-गोई की परंपरा या रोमांस केसस्वर पाठ से, जन साधारण और विशिष्ट लोग भी पूरा-पूरा आनंद लेते थे। लखनऊ के मुंशी नवल किशोर प्रेस ने दूरदर्शिता का परिचय देते हुए उस समय के प्रख्यात दास्तान वाचकों को दास्तान-ए-अमीर हम्ज़ा को लिखित रूप में संकलित को प्रेरित किया जिसके फलस्वरूप इसे अपार ख्याति प्राप्त हुई और इसे इतने आश्चर्यजनक ढंग से लोकप्रियता मिली कि इसके कई संस्करण प्रकाशित हो गए। यह चक्र तब तक चलता रहा जबतक कि इसके भारी भरकम ४६ खंड प्रकाशित नहीं हो गए। ये सारे खंड १८८० से १९०० के दशक में लखनऊ मेंतैयार किये गए और देखते ही देखते उर्दू कथा का मुकुट आभूषण बन गए। हालांकि, १९२० के दशक तक, वे पुराने ढंग का प्रतीत होने लगे, और पश्चिमी शैली के उपन्यास और लघु कथाएँ तेजी से इनकी जगह लेने लगीं। एक बार फिर मौखिक दास्तान-गोई के पुनरुद्धार के प्रयत्न किये जा रहे हैं जिसमें महमूद फ़ारूक़ी, दानिश हुसैन, (कभी कभी नसीरुद्दीन शाह ) और उनकी मंडली अग्रणी भूमिका में नज़र आ रही है। रेख़्ता पर प्रस्तुत इस साक्षात्कार में, फ़ारूकी और हुसैन अपनी प्रदर्शन शैली पर चर्चा कर रहे हैं। लिखित रूप में, तिलिस्म-ए-होशरुबा के एक खंड का अनुवाद और सम्पूर्ण तिलिस्म-ए-होशरुबा का संक्षिप्त अनुवाद भी प्रकाशित हो चुका है। पृष्ठभूमि से जानकारी के लिए यहाँ हम्ज़ा परंपरा का एक सामान्य अवलोकन भी मौजूद है। हमारी वेबसाइट पर, सम्मोहित कर देनेवाली इस दास्तान, तिलिस्म-ए-होशरुबा के खंड प्रमुखता से प्रकाशित किये गए हैं। ये दास्तानें हमारे दिल के बेहद निकट रही हैं और इसी लिए खुदा बख्श लाइब्रेरी ने १९९८ में इन्हें पुनः छापने का फ़ैसला किया। ये संस्करण मूल संस्करणों की तुलना में बेहतर अवस्था में हैं, और इन्हें पढ़ने में भी किसी प्रकार की कठिनाई नहीं पेश आती। इसके अलावा हम तिलिस्म-ए-होशरुबा श्रृंखला के परिचय के लिए खुदा बख्श लाइब्रेरी द्वारा प्रकाशित आधुनिक निबंध का एक सेट और प्रसिद्ध आलोचक मोहम्मद हसन अस्करी द्वारा मात्र एक खंड में इस दास्तान से अपने पसंदीदा अंश का चयन भी उपलब्ध करा रहे हैं। लेकिन हम तिलिस्म-ए-होशरुबा के सम्पूर्ण ४६ खण्डों के पूरे सेट को रेख़्ता पर लाना चाहते हैं जो जल्द ही इन दस्तानों में तल्लीन होने वाले मित्रों के लिए पीडीएफ रूप में इस साइट पर उपलब्ध होगा। कृपया हमारे साथ सहयोग करें कि हम इन दुर्लभ और भंगुर संस्करणों को अत्यधिक सावधानी के साथ स्कैन कर सकें। अधिकांश संस्करणों की स्कैनिंग शम्सुर्रहमान फ़ारुक़ी के निजी संग्रह से रेख़्ता टीम द्वारा की गयी है अन्य संस्करणों की स्कैनिंग की व्यवस्था फ्रान प्रिचेटद्वारा की गयी है साथ ही उन्होंने संस्करणों की पठनीयता की जांच करने और विभिन्न समस्याओं का समाधान करने में भी भरपूर सहयोग दिया है। हम और वे दास्तान-ए-अमीर हम्ज़ा को नए पाठकों तक पहुंचते हुए अपार हर्ष का अनुभव कर रहे हैं।