aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
सय्यद सरवर ज़हीर, जो अदबी दुनिया में सरवर ग़ज़ाली के नाम से जाने जाते हैं, एक जनवरी 1962 को पाक्सी में पैदा हुए। उनका शुमार उर्दू के मोतबर अफ़साना-निगारों और नाॅवेल-नवीसों में होता है। वह इस वक़्त जर्मनी में मुक़ीम हैं और बर्लिन की हम्बोल्ड यूनिवर्सिटी के शोबा-ए-तदरीस-ए-लिसानियात (अफ़्रीक़ा-ओ-एशिया) में उर्दू के लेक्चरर के तौर पर ख़िदमात अंजाम दे रहे हैं। सरवर ग़ज़ाली ने एम.ई. इंजीनियरिंग की डिग्री बर्लिन, जर्मनी से हासिल की, मगर उनकी अस्ल पहचान उनकी तख़लीक़ी और इल्मी सरगर्मियों से हुई। सरवर ग़ज़ाली ने उर्दू अफ़साने, नाॅवेल, मज़ामीन और तराजिम के मैदान में गिराँ-क़द्र ख़िदमात अंजाम दी हैं। उनकी तख़लीक़ात में ज़िंदगी के तल्ख़ हक़ायक़, हिज्रत के कर्ब और सामाजिक पेचीदगियों का भरपूर अक्स मिलता है। उनकी नुमायाँ तसानीफ़ दर्ज जे़ल हैंः
बिखरे पत्ते (अफ़सानवी मजमूआ, 2008)
दूसरी हिज्रत (नाॅवेल, 2013)
भीगे पल (अफ़सानवी मजमूआ, 2016)
मेरे मज़ामीन (मज़ामीन, 2017)
सूरज का अग़वा (अफ़सानवी मजमूआ, 2019)
ख़ून की भीक (जर्मन नाॅवेल, 2021)
शब-ए-हिज्राँ (नाॅवेल, एजूकेशनल पब्लिशिंग दिल्ली, 2021)
अफ़्सानों का सिंधी तर्जुमा (मुतर्जिम मुजीब ओटो, 2019)
हारा हुआ मल्लाह (अफ़सांचे, एजूकेशनल पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली, 2022)
सफ़र है शर्त (सफरनामा)
सरवर ग़ज़ाली की तहरीरें उर्दू अदब में एक मुन्फ़रिद हैसियत रखती हैं। उनकी कहानियों में हिज्रत, तन्हाई, यादें और इन्सानी नफ़्सियात की पेचीदगियों का गहरा मुशाहिदा मिलता है। उनके नाॅवेल और अफ़साने न सिर्फ़ उर्दू दुनिया में बल्कि तराजिम के ज़रीए दीगर ज़बानों में भी पज़ीराई हासिल कर चुके हैं। सरवर ग़ज़ाली की अदबी काविशें उर्दू अदब के सरमाए में एक क़ीमती इज़ाफ़ा हैं। वह एक हस्सास तख़लीक़कार, मुन्फ़रिद उस्लूब के हामिल अफ़साना-निगार और उर्दू ज़बान-ओ-अदब के फ़रोग़ में एक अहम इल्मी शख़्सियत हैं।