aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
नैना आदिल कराची में मुक़ीम मारूफ़ शायरा और फ़िक्शन राइटर हैं। गहरा फ़िक्री दर-ओ-बस्त और एक नुमायाँ क़िस्म की नग़्मगी की कैफ़ियत उनकी शायरी की पहचान का तअय्युन करते हैं। उसमें लिसानी सतह पर गीतों की सी ताज़गी और बेसाख़्तगी मिलती है। मज़मून-बंदी के रिवायती अमल की जगह उसका ज़ोर तज्रबे की सतह पर है। इस शायरी का मजमूई किरदार अपना अलग तशख़्ख़ुस रखता है और उनके हम-अस्रों से काफ़ी मुख़्तलिफ़ है। उर्दू अदब की तारीख़ में सिर्फ चंद शायर हैं जिन्होंने कई अस्नाफ़ में आला दर्जे की शायरी की है। नैना आदिल की मिसाल भी इस्तिसना है। जबकि फ़िक्शन की दुनिया में नैना आदिल का पहला क़दम ही इस क़दर ख़ुश-आइंद और बा-कमाल है कि नज़र अंदाज नहीं किया जा सकता। उनका नाक़ाबिल-ए-यक़ीन तख़लीक़ी बयानिया अपने आप में एक ऐसा ग़ैर-मामूली वाक़िआ है जिसे उर्दू अदब का शाहकार क़रार देते वाले अकाबिरीन और संजीदा क़ारईन जदीद क्लासीक का दर्जा देते हैं।
नैना आदिल 26 दिसंबर 1983 को कराची, पाकिस्तान में पैदा हुईं। कराची यूनिवर्सिटी से एम.ए. उर्दू करने के बाद उन्होंने वफ़ाक़ी यूनिवर्सिटी बराए फ़ुनून, साइंस और टैकनोलाॅजी से फ़र्स्ट डिवीज़न में एम.ए. (अंग्रेज़ी) किया। एक निजी तालीमी इदारे से वाबस्ता रहते हुए अपनी तीन बहनों के तआवुन से उन्होंने शहर के नवाही इलाक़ों में चंद स्कूल क़ायम किए हैं, जहाँ कम और औसत आमदनी वाले ख़ानदानों के बच्चों को तालीम दी जाती है।
नैना आदिल उर्दू, फ़ारसी, अंग्रेज़ी और हिन्दी के अलावा दीगर हिन्दुस्तानी ज़बानों में शेर कहती हैं। नाॅवेल, अफ़साने, मज़ामीन और बच्चों के लिए कहानियाँ लिखने के साथ-साथ आप फ़ैशन डिज़ाइनिंग, तब्बाख़ी, रक़्स और डिजिटल आर्ट से शग़फ़ रखती हैं। उर्दू, फ़ारसी, अंग्रेज़ी और दीगर मग़रिबी ज़बानों के अदब से गहरी दिलचस्पी है। ता-हाल फ़ारसी के सबसे बड़े ग़ज़ल-गो शायर हाफ़िज़ शीराज़ी के हवाले से तहक़ीक़ी-ओ-तख़लीक़ी काम जारी है।
नैना आदिल की तसानीफ़ः अव्वलीन शेरी मजमूआ ‘शब्द’ दिल्ली एडीशन, इशाअत-ए-अव्वल (2018), ‘शब्द’ लाहौर एडीशन (2021), नाॅवेलः मुक़द्दस गुनाह (2023), दूसरा शेरी मजमूआ ‘गुल-ए-रक़्साँ’ (2024)