aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
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آرائش محفل نام سے دو کتابیں مشہور ہیں۔ آرائش محفل (قصہ حاتم طائی) جس میں حاتم طائی کا قصہ ہے جو پہلے فارسی زبان میں تھا اور جسے سید حیدر بخش حیدری نے 1802ء میں گلکرسٹ کی فرمائش پر فورٹ ولیم کالج کے لیے اردو میں منتقل کیا۔ دوسری آرائش محفل ایک مستند کتاب خلاصۃ التواریخ مرتبہ منشی سجان رائے بٹالوی کا اردو ترجمہ ہے جو میر شیر علی افسوس نے مسٹر جے ایک مارنگٹن کے ایما سے 1805ء میں کیا۔ جس میں ہندوستان کے جغرافیائی حالات کے علاوہ فتح اسلام تک ہندو راجاؤں کے حالات ہیں۔ اس کی پہلی اشاعت 1808ء میں کلکتہ سے ہوئی۔ زیر نطر دوسری آرائش محفل ہے۔
फ़ोर्ट विलियम कॉलेज के नामचीन लेखकों में एक नाम मीर शेर अली अफ़सोस का है। कलकत्ता पहुँचने से पहले ही वो शायर व लेखक के रूप में ख्याति प्राप्त कर चुके थे।
मीर शेर अली नाम, अफ़सोस तख़ल्लुस। मीर क़ासिम के तोपख़ाना के दारोगा मीर मुज़फ़्फ़र अली ख़ान के बेटे थे। सन्1746 के लगभग पैदा हुए। लखनऊ प्रवास ने शायरी का शौक़ पैदा कर दिया। अफ़सोस तख़ल्लुस इख़्तियार किया और मीर हैदर अली हैरान से कलाम की अशुद्धियां ठीक कराने लगे। मीर, सौदा, मीर हसन, मुसहफ़ी, इंशा और जुर्रत जैसे शायरों की महफ़िलें देखीं और बड़े बड़े शायरों के साथ लखनऊ के मुशायरों में शिरकत की।
लखनऊ के एक रईस और नवाब आसिफ़ उद्दौला के नायब नवाब रज़ा ख़ां के ज़रिए कर्नल इस्काट से मुलाक़ात हुई। उन्हें अफ़सोस की शैक्षणिक क्षमता का अंदाज़ा हुआ तो पांच सौ रुपया राह ख़र्च देकर फोर्ट विलियम कॉलेज कलकत्ता भेज दिया। वहाँ मुंशियों में मुलाज़िम हो गए।
अफ़सोस ने “गुलिस्तान-ए-सादी” का अनुवाद “बाग़-ए-उर्दू” के नाम से किया। यह किताब इसलिए अधिक लोकप्रिय नहीं हो सकी कि ज़्यादा फ़ारसी युक्त है। उनकी दूसरी किताब “खुलासा-तुल-तवारीख़” है जो मुंशी सुबहान राय की फ़ारसी किताब का अनुवाद है।
अफ़सोस का 1809ई. में निधन हुआ।
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