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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

लेखक : मोह्सिन्नुल मुल्क

प्रकाशक : मदरसतूल-उलूम, अलीगढ़

मूल : अलीगढ़, भारत

प्रकाशन वर्ष : 1904

भाषा : Urdu

श्रेणियाँ : अन्य

पृष्ठ : 28

सहयोगी : रेख़्ता

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पुस्तक: परिचय

محسن الملک سر سید احمد خان کے دست راست تھے ۔ یہ سپاس نامہ محسن الملک نے سر جان جیمس ڈگیس لاٹوش جو کہ صوبہ آگرہ کے گورنر تھے کے نام لکھا گیا ہے۔ جس میں کالج کی خوبیاں اور اس کی خصوصیات نیز اس کی تعمیرات کا ذکر کیا گیا ہے اور کالج کی ترقی اور اس کی کامیابی کی طرف توجہ دلائی گئی ہے۔

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लेखक: परिचय

सय्यद मेह्दी अली नाम था, मुहसिन-उल-मुल्क का ख़िताब पाया तो लोग नाम भूल गए, मुहसिन-उल-मुल्क ही कहने लगे। इटावा में 1817ई. में पैदा हुए। अरबी-फ़ारसी की शिक्षा प्राप्त कर दस रुपये मासिक पर कलक्टरी में मुलाज़िम हो गए। मेहनत और ईमानदारी से काम करने के पुरस्कार में तरक़्क़ी पाते रहे। यहाँ तक कि तहसीलदार हो गए। नौकरी के दौरान क़ानून से सम्बंधित दो किताबें लिखीं जिन्हें अंग्रेज़ अधिकारियों ने उपयोगी घोषित किया और वो डिप्टी कलेक्टर बना दिए गए। प्रदर्शन की ख्याति हैदराबाद तक पहुंची और उन्हें बारह सौ रुपये मासिक पर वित्त का इंस्पेक्टर जनरल बना कर बुला लिया गया। तरक़्क़ी का सिलसिला जारी रहा और वो वित्त विभाग के ट्रस्टी नियुक्त हुए। तीन हज़ार रुपये मासिक वेतन निर्धारित हुआ। अच्छी सेवाओं के सम्मान में रियासत की तरफ़ से मुहसिन उद्दौला, मुहसिन-उल-मुल्क, मुनीर नवाज़ जंग की उपाधियाँ प्रदान की गईं। हैदराबाद में उनकी ऐसी इज़्ज़त थी कि बेताज बादशाह कहलाते थे। सन्1893 में पेंशन लेकर अलीगढ़ चले आए और बाक़ी ज़िंदगी कॉलेज की ख़िदमत में गुज़ारी। सर सय्यद के बाद मुहसिन-उल-मुल्क ही उनके उत्तराधिकारी हुए। सन् 1907 में शिमला में निधन हुआ मगर उन्हें अलीगढ़ लाकर सर सय्यद के पहलू में दफ़न किया गया।

मुहसिन-उल-मुल्क को सर सय्यद का दायाँ हाथ कहा जाए तो दुरुस्त है। उन्होंने हर क़दम पर सर सय्यद के साथ सहयोग किया। अपनी ज़बान और क़लम से सर सय्यद के विचार और चिंतन को फैलाने में मदद की। उनके आलेख तहज़ीब-उल-अख़लाक़ में अक्सर प्रकाशित होते थे। मुहसिन-उल-मुल्क की नस्र बहुत दिलकश है। मालूम होता है एक एक लफ़्ज़ पर उनकी नज़र रहती है और वो बहुत सोच समझ कर उनका चयन करते हैं। इसलिए वो जो कुछ लिखते हैं उस का एक एक लफ़्ज़ दिल में उतरता जाता है और दिल पर असर करता है। उनके पत्रों का संग्रह प्रकाशित हो चुका है जो आज भी बहुत शौक़ से पढ़े जाते हैं। अल्लामा शिबली भी मुहसिन-उल-मुल्क की दिलकश तहरीर पर मुग्ध थे।

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