aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
زیر نظر کتاب "افکار حالی" مولوی عبد الحق کی تصنیف ہے۔ یہ کتاب حالی کے سلسے میں قابل قدر مضامین کا مجموعہ ہے، کتاب کے ابتدا میں جناب جمیل الدین عالی صاحب کا "حرفے چند" کے عنوان سے ایک تعارفی تبصرہ ہے۔ تیرہ عناوین پر مشتمل یہ کتاب در اصل بابائے اردو مولوی عبد الحق کے مضامین کا مجموعہ ہے جو انہوں نے مختلف اوقات میں حالی کے متعلق اپنے خیالات کا اظہار کیا تھا، چناچہ انجمن پنجاب نے اسے ترتیب دیکر "انجمن ترقی اردو پاکستان سے 1976ء میں شائع کیا۔ اندرون صفحات جو مضامین ہیں وہ اس طرح ہیں۔ حالی اور عبدالحق۔ حالی کی شخصیت۔ ایک مثالی کردار۔ حالی اور انسانیت۔ دردمند حالی۔ حالی کا جشن صد سالہ۔ حالی کی شاعری۔ حالی اور اردو ادب۔ حالی کی تنقید نگاری۔ ہندی دوہے اور اردو شاعری پر مولانا حالی کا محاکمہ۔ مسدس حالی۔ مقالات حالی۔ مکتوبات حالی۔ تبصرے۔ مجموعی پور پر اس کتاب میں شامل جملہ مضامین تحقیق و تنقید اور خاکہ نگاری کی عمدہ نگارش ہے۔
बाबाए उर्दू मौलवी अब्दुलहक़ ने उर्दू की तरक़्क़ी के लिए अपनी ज़िंदगी को समर्पित कर दिया था। उनकी जीवन का कोई लम्हा ऐसा न था जो उर्दू की चिंता से ख़ाली हो। ये उनकी सेवाओं की मान्यता ही है कि वो हर जगह बाबा-ए-उर्दू के नाम से जाने जाते हैं।
अब्दुलहक़ 1870ई. में हापुड़ ज़िला मेरठ में पैदा हुए। आरंभिक शिक्षा के बाद आगे की शिक्षा के लिए मोहमडन कॉलेज अलीगढ़ भेजे गए। यहाँ उनकी क्षमताओं को फलने फूलने का मौक़ा मिला। सर सय्यद तक पहुँच थी। उनसे सीधे लाभ उठाने का मौक़ा मिला। यहीं मौलाना हाली और मुहसिन-उल-मुल्क से भी नियाज़ हासिल हुए। सर सय्यद के साहबज़ादे जस्टिस महमूद से भी मुलाक़ात थी। सर सय्यद ने लेखन व संकलन का कुछ काम अब्दुलहक़ के सपुर्द भी किया इस तरह लिखने पढ़ने की पहली दीक्षा उसी मर्द बुज़ुर्ग के हाथों हुई।
शिक्षा से निवृत हो कर अब्दुलहक़ आजीविका की तलाश में हैदराबाद चले गए और एक स्कूल में अध्यापक की नौकरी स्वीकार कर ली। आख़िर तरक़्क़ी पाकर मदरसों के इंस्पेक्टर नियुक्त हुए। उसी ज़माने में अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू के सेक्रेटरी चुने गए। सन्1917 में उस्मानिया यूनीवर्सिटी के अनुवाद विभाग से अल्प अवधि के लिए सम्बद्ध रहे। आख़िर औरंगाबाद कॉलेज के प्रिंसिपल हो गए। अब उन्हें अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू को स्थिर करने का मौक़ा मिला। इसी के साथ ही लेखन व संकलन का सिलसिला जारी रहा। आख़िर में उस्मानिया यूनीवर्सिटी के उर्दू विभाग के अध्यक्ष हो गए। रिटायर होने के बाद दिल्ली आगए और उर्दू तथा अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू की सेवा में व्यस्त हो गए। देश विभाजित हुआ तो कराची चले गए और वहाँ भी उर्दू की तरक्क़ी की कोशिश में लगे रहे। आख़िर वहीं 1961ई. में उनका निधन हुआ। बाबाए उर्दू की सेवाओं को स्वीकारते हुए इलाहाबाद यूनीवर्सिटी ने सन् 1937 में उन्हें डाक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की।
बाबाए उर्दू मौलवी अब्दुलहक़ का ये कारनामा प्रशंसनीय है कि प्राचीन उर्दू साहित्य का जो धरोहर पांडुलिपियों के रूप में सन्दूक और अलमारियों में बंद था और जिसके नष्ट होजाने का डर था मौलवी साहब ने उसे क्रमबद्ध कर प्रकाशित किया और बर्बाद होने से बचा लिया। उन किताबों पर मौलवी साहब ने प्रस्तावना लिखकर उनके महत्व पर प्रकाश डाला। लेखकों के जीवन परिचय खोज कर हम तक पहुंचाए, उन रचनाओं के रचनाकाल की विशेषताएं स्पष्ट कीं और उर्दू आलोचना के लिए एक मज़बूत आधार प्रदान किया।
छानबीन के बाद कई गलत धारणाओं का खंडन किया जैसे इस विचार को रद्द किया कि मीर अमन की बाग़-ओ-बहार फ़ारसी के क़िस्सा चहार दरवेश का अनुवाद है। उन्होंने तर्कों से साबित कर दिया कि इसका स्रोत नौ तर्ज़-ए-मुरस्सा है। मौलवी साहब की भाषा सरल और सहज होती है जैसी शोध के लिए आवश्यक है।
मुक़द्दमात-ए-अब्दुलहक़, ख़ुत्बात-ए-अब्दुलहक़, तंकीदात-ए-अब्दुलहक़ उनसे यादगार हैं। फ़र्हंग, लुग़त और इस्तिलाहात पर भी उन्होंने काम किया। “चंद हमअस्र” उनकी लोकप्रिय पुस्तक है जिसमें विभिन्न शख़्सियतों पर लेख शामिल हैं।
Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi
Get Tickets