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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

लेखक : अली अब्बास हुसैनी

संस्करण संख्या : 001

प्रकाशक : पंजाबी पुस्तक भण्डार, दिल्ली

मूल : दिल्ली, भारत

प्रकाशन वर्ष : 1968

भाषा : Urdu

पृष्ठ : 176

सहयोगी : जामिया हमदर्द, देहली

amir khusrow
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लेखक: परिचय

अली अब्बास हुसैनी अफ़्साना निगार, आलोचक और नाटककार के रूप में जाने जाते हैं। उनकी पैदाइश 03 फरवरी 1897 को मौज़ा पारा ज़िला ग़ाज़ीपुर में हुई। मिशन हाई स्कूल इलाहाबाद से मैट्रिक और इंटरमीडिएट किया। केनिंग कॉलेज लखनऊ से बी.ए. मुकम्मल करने के बाद  इलाहाबाद यूनीवर्सिटी से इतिहास में एम.ए. किया। गर्वनमेंट जुबली कॉलेज लखनऊ में शिक्षा-दीक्षा से सम्बद्ध  रहे। यहीं से 1954 में प्रिंसिपल के पद से सेवानिवृत हुए। 27 सितंबर 1969 को  देहांत हुआ।
अली अब्बास हुसैनी को बचपन से ही क़िस्से-कहानियों में दिलचस्पी थी। दस-ग्यारह बरस की उम्र में अलिफ़ लैला के क़िस्से, फ़िरदौसी का शाह नामा, तिलिस्म होश-रुबा और उर्दू में लिखे जानेवाले दूसरे अफ़सानवी अदब का अध्ययन कर चुके थे। 1917 में पहला अफ़साना ग़ुंचा-ए-ना-शगुफ़्ता के नाम से लिखा और 1920 में सर सय्यद अहमद पाशा के क़लमी नाम से पहला रुमानी नॉवेल ‘क़ाफ़ की परी’ लिखा। ‘शायद कि बहार आई’ उनका दूसरा और आख़िरी उपन्यास है। रफ़ीक़-ए-तन्हाई, बासी फूल, कांटों में फूल ,मेला घुमनी, नदिया किनारे, आई.सी.एस. और दूसरे अफ़साने, ये कुछ हंसी नहीं है, उलझे धागे, एक हमाम में, सैलाब की रातें, कहानियों के संग्रह प्रकाशित हुए।
‘एक ऐक्ट के ड्रामे’ उनके ड्रामों का संग्रह है। अली अब्बास हुसैनी की एक पहचान कथा-आलोचक के रूप में भी हुई। उन्होंने पहली बार नॉवेल की तन्क़ीद-ओ-तारीख़ पर एक ऐसी विस्तृत किताब लिखी जो आज तक कथा-आलोचना में एक संदर्भ के रूप में जानी जाती है। ‘अरूस-ए-अदब’ के नाम से उनके आलोचनात्मक आलेख का संग्रह प्रकाशित हुआ।

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