aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
राही की गिनती प्रसिद्ध प्रगतिवादी शायरों में होती है। आज़मगढ़ में पैदा हुए। राही के पूर्वज ईरान से हिन्दुस्तान आए थे और दिल्ली में आबाद हो गए। दिल्ली से आज़मगढ़ आ गए यहाँ कोठिया नामक गांव में आबाद हुए।
राही ने शायरी के साथ उन्यास, कहानी, ड्रामे और रेखा चित्र भी लिखे। उन्होंने ‘अदबी असनाफ़’ नाम से एक त्रैमासिक पत्रिका भी निकाला। फ़िराक़ गोरखपुरी के संरक्षण में एक साप्ताहिक ‘इश्तिराक़’ के नाम से प्रकाशित किया। राही ने पत्रकारिता एंव साहित्यिक प्रयत्नों द्वारा प्रगतिवादी विचारधारा को आम करने की कोशिश की।
राही ने बहुत सी किताबें लिखीं। उनकी कुछ किताबों के नाम ये हैं— ‘कसक’, ‘ये गीत तुम्हारे हैं’, ‘मंज़िल मंज़िल’, ‘ख़ूब बहा’, ‘ज़ैतून के पेड़’, ‘शफ़क़ के फूल’, ‘शहर बेख़्वाब’, ‘जले पेड़ की छाँव’(शायरी), ‘झूठे सनम’, ‘अंधेरा शहर’, ‘अश्क संग’, ‘ज़ादे सफ़र’(कथा)
21 सितंबर 2005 को गोरखपुर में देहांत हुआ।
प्रतिष्ठित प्रगतिवाद शायर, कहानीकार और पत्रकार