aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
"بہارستان" ظفر علی خان کےاشعار کا خوبصورت گلدستہ ہے، جس میں زیادہ تر مذہبی نظمیں،حمد و نعت ہے۔ اس میں غزلوں کو بھی عنوان دیا گیا ہے۔ ہر عنوان کے تحت شاعر اشعار کو نظم کرتا ہے۔ شاعر نے عناوین کےتحت اشعار کو مرتب کیا ہے اور اس کے ضمن میں ایک دو یا اس سے زاید غزلیں نظم کی ہیں۔ پورا کلام مذہبی اشعار پر مبنی ہے اور اس میں جا بجا عناوین کو جگہ دی گئی ہے۔ شاعر نے اپنے اشعار پر کچھ اس طرح عناوین کو چسپا کیا ہے۔ آوازہ حق، دعا، مقام حیرت، لیس کمثلہ شی، وسعت آرزو، میدان عرفات میں مناجات، کلام اللہ، اشعار نعت، فریاد بحضور سرور کونین، رحمۃ للعالمین، جشن میلاد نبی وغیرہ۔ اس لئے مذہبیات کی رو سے مطالعہ کے شوقین حضرات کو اس طرٖ ف ضرور متوجہ ہونا چاہئے۔
ज़फ़र अली ख़ाँ के व्यक्तित्व के कई पहलू हैं। वह शायर भी थे, संपादक भी आज़ादी के संघर्ष में हिस्सा लेने वाले एक सक्रिय राजनीतिक कार्यकर्ता भी। उनका जन्म 1873 में क़स्बा कोट मरता ज़िला सियालकोट में हुआ। आरम्भिक शिक्षा कर्माबाद में ही प्राप्त की और उसके बाद एंग्लो मोहमडन कॉलेज अलीगढ़ में अध्ययनरत रहे।
मौलाना ज़फ़र अली ख़ाँ उस समय के मशहूर दैनिक ‘ज़मीदार’ के संपादक रहे। उस अख़बार ने अपने वक़्त में राजनैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक समस्याओं, मामलात का चित्रण और समाज के एक बड़े समुदाय में उन समस्याओं के संदर्भ में एक राय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मौलाना की राजनैतिक धारा गांधी जी का अहिंसा की नीति से बहुत भिन्न थी । वह अंग्रेज़ी हुक्मरानों से सीधे टकराव में विश्वास रखते थे। स्वतंत्रता आन्दोलन में हिस्सा लेने के जुर्म में गवर्नर पंजाब सर माईकल ओडवायर के दौर में उन्हें पांच साल का सश्रम कारावास की सज़ा बर्दाश्त करनी पड़ी। ख़िलाफ़त आन्दोलन से भी मौलाना की सम्बद्धता बहुत मज़्बूत थी।
मौलाना की शायरी भी उनकी उस राजनैतिक और सामाजिक संघर्ष का एक माध्यम रही। उनकी नज़्मों के विषय उनके वक़्त की उथल पुथल के आस पास घूमते हैं। उनकी अधिकतर नज़्मों की रचना सामाजिक मांग के अवसर की गयी हैं।
उनका देहांत 27 नवंबर 1956 में लाहौर में हुआ।
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