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ख्वाजा अल्ताफ़ हुसैन हाली के ‘मुक़द्दमा-ए-शे’र-ओ-शायरी’ के बाद वैचारिक, व्यवहारिक आलोचना और आलोचना के सिद्धांत के अध्याय में जो किताब बहुत महत्वपूर्ण है उसका नाम है ‘काशिफुल हकाईक़’ बहारिस्तान-ए-सुखन के नाम से मशहूर है, यह अकेली ऐसी किताब है जिसमें शायरी का रिश्ता जीवविज्ञान, कृषिविज्ञान और दूसरी विद्याओं से जोड़ा गया है और इस तरह उर्दू को एक अंतर्शास्त्री आलोचना का रूप प्रदान किया गया है.
ख्वाजा अल्ताफ़ हुसैन हाली के विपरीत ‘काशिफुल हकाईक़’ की ख़ूबी यह है कि इसके लेखक ने सीधा पश्चिमी साहित्य का अध्ययन किया है और पाश्चात्य शायरों के अलावा दूसरे देसों की शायरी से अपनी किताब में बात की है और शायरी को कई भागों में विभाजित कर उसका निरीक्षण किया है. कथित और आतंरिक शायरी के संदर्भ से बात की है और उर्दू शायरी की विभिन्न विधाओं और शे’री आकृतियों पर व्यापक बहस की है. विभिन्न विधाओं की विशेषताओं का बहुत अच्छी तरह उल्लेख किया है. संगीत और चित्रकला से शायरी के रिश्ते की उचित व्याख्या की है. इसके अलावा ‘काशिफुल हकाईक़’ के लेखक उर्दू के शायद ऐसे अकेले आलोचक हैं जिन्होंने कृषिविज्ञान पर ‘कीमिया-ए-ज़राअत’ शीर्षक किताब लिखी और पौदों के हवाले से ‘किताबुल असमार’ लिखी. यह दोनों किताबें इसलिए अहम हैं कि इन विषयों पर उर्दू में बहुत कम किताबें उपलब्ध हैं. इन दोनों किताबों पर बात नहीं हो सकी जबकि इन दोनों किताबों पर नये ढंग से बात होनी चाहिये थी.
‘काशिफुल हकाईक़’ और उन दो अहम किताबों के लेखक का नाम नवाब सैयद इमदाद इमाम असर है जिनकी पैदाइश 17 अगस्त 1849 को करापर सराय सालारपुर, ज़िला पटना में हुई उनका सम्बंध प्रसिद्ध शिक्षित घराने से था. उनके एक बुज़ुर्ग शहंशाह औरंगज़ेब के उस्ताद थे. उनके पिता शम्सुल उलमा सैयद वहीदुद्दीन बहादुर सदरुसुदुर मजिस्ट्रेट और रजिस्ट्रार थे और दादा सैयद इमदाद अली भी सद्रुस्सुदुर थे. उन्होंने आरम्भिक शिक्षा सैयद मुहम्मद मोहसिन बनारसी से प्राप्त की और अपने पिता सैयद वहीदुद्दीन से भी लभान्वित हुए. शुरू में वकालत का पेशा अपनाया बाद में पटना कालेज में इतिहास और अरबी के प्रोफेसर नियुक्त हुए. रियासत सूरजपुर ज़िला शाह्जह्नाबाद में मदार अल्मुहाम के पद पर बी भी नियुक्त रहे. प्राच्य भाषाओं में उन्हें महारत हासिल थी. उन्हें अंग्रेज़ी हुकूमत की तरफ़ से शम्सुल उल्मा और नवाब के खिताबात भी मिले. उन्होंने दो शादियां कीं. उनकी औलादों में अली इमाम, अहसन इमाम बहुत मशहूर हुए. व्यवहार में बे परवाई थी और नवाब खानदान से सम्बन्ध होने के बावजूद स्वभाव में विनम्रता थी. उनका देहांत 17 अक्टूबर 1934 को हुआ और वह मानपुर रोड आब्गला, गया बिहार में दफ़न हैं.
इमदाद इमाम असर नॉवेलनिगार, शायर और आलोचक थे. उनकी अहम किताबों में ‘काशिफुल हकाईक़’ के अलावा ‘मिरातुल हुकमा’, ‘फ़साना-ए-हिम्मत,’ ‘किताबुल असमार,’ ‘कीमिया-ए-ज़राअत,’ ‘फ़वाएद दारिन’ और ‘दीवान-ए-असर’ अहम हैं.
इमदाद इमाम असर को शोहरत ‘काशिफुल हकाईक़’ से मिली. इस किताब के पहले खंड में उन्होंने मिस्र,यूनान,इटली और अरब की शायरी का उल्लेख किया है और अरबी शायरी में उन्होंने अम्रऊलक़ैस, मुत्नबी के अलावा दूसरे शायरों पर बहस करते हुए अम्रऊलक़ैस का मीर व ग़ालिब से तुलनात्मक अध्ययन भी पेश किया है. मिस्र, यूनान, इटली के शायरों पर भी विस्तार से बात की है. दूसरे खंड में उन्होंने फ़ारसी और उर्दू दोनों भाषाओं की विधाओं की विवेचना प्रस्तुत की है और तुलनात्मक और समीक्षात्मक अध्ययन भी किया है. उन्होंने संस्कृत की काव्य परम्परा पर भी अपना ध्यान केंद्रित किया है और यह लिखा है कि अगर संस्कृत की शायरी पर तवज्जोह दी जाती तो विधा के स्तर पर उर्दू शायरी को और व्यापकता उपलब्ध होती. उनका यह ख्याल है कि ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ जैसे महाकाव्य फ़ारसी में भी नहीं है. उन्होंने मीर, ग़ालिब, ज़ौक़ वगैरह पर बहुत विस्तार से रौशनी डाली है और इसतरह विभिन्न भाषाओं की शायरी से परिचय कराया है.
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