Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

लेखक : मुल्ला रमूज़ी

प्रकाशक : मुल्ला रमूज़ी

मूल : भोपाल, भारत

प्रकाशन वर्ष : 1932

भाषा : Urdu

श्रेणियाँ : शाइरी

उप श्रेणियां : दीवान

पृष्ठ : 36

सहयोगी : उर्दू आर्ट्स कॉलेज, हैदराबाद

deewan-e-mulla rumoozi
For any query/comment related to this ebook, please contact us at haidar.ali@rekhta.org

लेखक: परिचय

मुल्ला रमूज़ी गुलाबी उर्दू के आविष्कारक के रूप में हमारे अदब में पहचाने जाते हैं। ख़ुद उनके शब्दों में गुलाबी उर्दू का मतलब ये है कि वाक्य में शब्दों के क्रम को बदल दिया जाए। जैसे ये कि पहले क्रिया फिर कर्ता और कर्म। इस तरह अरबी से उर्दू अनुवाद का अंदाज़ पैदा होजाता है। बेशक यह लुत्फ़ देता है लेकिन ज़रा देर बाद पाठक उकता जाता है।
मुल्ला रमूज़ी का असल नाम सिद्दीक़ इरशाद था। भोपाल में 1896ई. में पैदा हुए। ये उनका पैतृक स्थान नहीं था। उनके पिता और चचा काबुल (अफ़ग़ानिस्तान) से आकर भोपाल में रहने लगे। दोनों विद्वान थे इसलिए उच्च नौकरियों से नवाज़े गए। सिद्दीक़ इरशाद उर्दू, फ़ारसी, अरबी की आरंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद कानपुर के मदरसा इलाहियात में दाख़िल हुए। उसी ज़माने में लेख लिखने का शौक़ हुआ। उनके लेख मानक पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। अब उन्होंने अपना क़लमी नाम मुल्ला रमूज़ी रख लिया और साहित्य की दुनिया में इसी नाम से मशहूर हुए।

देश में स्वतंत्रता आन्दोलन ने ज़ोर पकड़ा तो मुल्ला रमूज़ी उससे प्रभावित हुए बिना न रह सके। राजनीतिक मुद्दों पर अच्छी नज़र थी। सरकार के ख़िलाफ़ हास्यप्रद लेख लिखने लगे जिन्हें पसंद किया गया। कई पत्रिकाओं ने उन्हें संपादक बनाकर गौरवान्वित किया। उसके बाद वहीदिया टेक्नीकल स्कूल में अध्यापक हो गए। सन्1952 में उनका निधन हुआ।

मुल्ला रमूज़ी गद्यकार होने के साथ साथ शायर व वक्ता भी थे। उनके पास प्रशासनिक क्षमता भी थी। इससे फ़ायदा उठाते हुए, शिक्षा व साहित्य के प्रचार प्रसार के लिए उन्होंने कई संस्थाएं स्थापित कीं लेकिन उनकी असल प्रसिद्धि गुलाबी उर्दू पर है जिसके वे आविष्कारक हैं। उनकी यह निराले रंग की किताब “गुलाबी उर्दू” के नाम से 1921ई. में प्रकाशित हुई। उसे सामान्य स्वीकृति मिली लेकिन वो जानते थे कि यह स्वीकृति स्थायी नहीं सामयिक है। इसलिए उन्होंने राजनीति को अपना स्थायी विषय बनाया और सादा व सरल भाषा को अपनाया। हास्य-व्यंग्य  स्वभाव में था, इसलिए सादगी में भी हास्य का हल्का हल्का रंग बरक़रार रहा, उसे पसंद किया गया।
वह लिखते हैं कि मेरे लेखों की कोई अहमियत है तो सिर्फ इसलिए कि “मैं हक़ीक़त का दामन नहीं छोड़ता।” सरकार के अत्याचार, सामाजिक अन्याय और सामाजिक बुराइयाँ उन्हें मजबूर करते हैं कि जो कुछ लिखें हास्य की आड़ में लिखें। नतीजा ये कि दिलचस्पी में इज़ाफ़ा हो जाता है।

.....और पढ़िए
For any query/comment related to this ebook, please contact us at haidar.ali@rekhta.org

लेखक की अन्य पुस्तकें

लेखक की अन्य पुस्तकें यहाँ पढ़ें।

पूरा देखिए

लोकप्रिय और ट्रेंडिंग

सबसे लोकप्रिय और ट्रेंडिंग उर्दू पुस्तकों का पता लगाएँ।

पूरा देखिए

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

Get Tickets
बोलिए