aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़ का जन्म 1866 में दिल्ली के एक प्रतिष्ठित, शिक्षित और साहित्यिक परिवार में हुआ था। उन्होंने सख़्त पर्दे का पालन किया और घर पर ही उर्दू और फ़ारसी सीखी। उनकी शादी राजस्थान में जयपुर के एक सम्मानित और शिक्षित परिवार में हुई, जहाँ उन्हें "बड़ी बेगम" की उपाधि मिली। उन्होंने ग़ज़ल, सलाम, क़सीदा आदि जैसी विधाओं में रचनाएँ कीं, लेकिन उनके लेखन को प्रकाशित करने का कोई सवाल ही नहीं था।
उनके सबसे छोटे बेटे ने 1915 में उनका दीवान "दीवान-ए-परवीन" संकलित किया। परवीन ने इस दीवान की एक प्रति और मीर उस्मान अली ख़ान की प्रशंसा में एक क़सीदा हैदराबाद भेजा। मीर उस्मान अली ख़ान ने उन्हें सम्मानित करते हुए ख़िलअत (सम्मान का वस्त्र) और पाँच सौ रुपए भेंट किए।
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