aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
शोर, जार्ज पेश(1823-1894)अलीगढ़ में आबाद फ्राँसीसी ख़ानदान के थे। वहीं पारम्परिक तरीक़े से उर्दू और फ़ारसी की ता’लीम हासिल की। पुलिस की नौकरी की और फिर मेरठ में बस गए। 1857 की जंग-ए-आज़दी के दौरान उन्हें ख़ासी परेशानियाँ उठानी पड़ीं जिस का बयान उनकी आत्मकथा ‘दास्तान-ए-गदर’ में मिलता है। उनके कई दीवान मौजूद हैं।
Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi
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