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रद करें डाउनलोड शेर

लेखक : अब्दुल माजिद दरियाबादी

संस्करण संख्या : 002

प्रकाशक : मतबा इंस्टिट्यूट, अलीगढ़

मूल : अलीगढ़, भारत

प्रकाशन वर्ष : 1920

भाषा : Urdu

श्रेणियाँ : मनोविज्ञान, दर्शन / फ़िलॉसफ़ी

पृष्ठ : 258

सहयोगी : अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू (हिन्द), देहली

फ़ल्सफ़ा-ए-जज़्बात
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पुस्तक: परिचय

فلسفہ جذبات کسی زمانے میں شعبہ نفسیات کے ذیل میں ہی شمار کیا جاتا تھا لیکن بعد کے وقتوں میں اسے ختم کر کے علم نفسیات میں ہی ضم کر دیا گیا۔ زیر نظر کتاب اسی فلسفہ جذبات سے معاملہ کرتی ہے جس کے مصنف عبد الماجد صاحب تھے جنہوں نے اپنے زمانے اجتماع، مبادی نفس انسانی، مکالمات برکلے اور تاریخ اخلاق یورپ جیسی اہم کتابیں بھی لکھیں۔ اس کتاب میں انہوں نے نفس کے مستقر، نظام عصبی، لذت و الم، جذبات کی ماہیت، غم و مسرت، خوف، غضب، انا، شہوت، اختلال جذبات اور حکماء ہند کے فلسفہ جذبات جیسے اہم موضوعات پر تفصیلی گفتگو کی ہے۔

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लेखक: परिचय

मौलाना अब्दुल माजिद दरियाबादी हमारे समय के प्रसिद्ध लेखक और पत्रकार गुज़रे हैं। दर्शनशास्त्र उनका प्रिय विषय है। उन्होंने दर्शन से सम्बंधित किताबों के अनुवाद भी किए और ख़ुद भी किताबें लिखीं। उनके लेखन शैली को भी सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था।

अब्दुल माजिद 1892ई. में दरियाबाद ज़िला बाराबंकी में पैदा हुए। यहीं आरंभिक शिक्षा हुई। उर्दू, फ़ारसी और अरबी घर पर ही सीखी। फिर सीतापुर के एक स्कूल में दाख़िला लिया और मैट्रिक का इम्तिहान पास किया। इसके बाद उच्च शिक्षा के लिए लखनऊ गए और बी.ए में कामयाबी हासिल की। उनके पिता डिप्टी कलेक्टर थे। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए वातावरण अनुकूल था। छात्र जीवन के आरंभिक दिनों से ही अध्ययन का शौक़ पैदा हो गया था। किताबें पढ़ने में ऐसा दिल लगता था कि दोस्तों से मिलना-जुलना भी नागवार होता था। अपने छात्र जीवन से ही लेख भी लिखने लगे थे। ये आलेख उस ज़माने की अच्छी पत्रिकाओं में छप कर दाद पाते थे और लेखक को प्रोत्साहित किया जाता था। 
बाप का साया सर से उठ जाने के बाद जीविकोपार्जन की चिंता हुई। पहले तो लेख लिखकर जीविकोपार्जन करना चाहा मगर इसमें पूरी तरह सफलता नहीं मिली। फिर मुलाज़मत की तरफ़ मुतवज्जा हुए मगर कोई नौकरी लम्बे समय तक चलने वाली साबित नहीं हुई। आख़िरकार हैदराबाद चले गए। वहीं अपनी मशहूर किताब “फ़लसफ़-ए-जज़्बात” लिख कर अकादमिक हलकों में प्रसिद्धि और ख्याति प्राप्त की। उस समय तक उर्दू में फ़लसफ़े के विषय पर बहुत कम लिखा गया था। मौलाना ने फ़लसफ़े के विषय पर ख़ुद भी किताबें लिखीं और कुछ महत्वपूर्ण किताबों का अनुवाद भी किया। “मुकालमात-ए-बर्कले” उनकी महत्वपूर्ण उपलब्धि है।

मौलाना का विशेष क्षेत्र पत्रकारिता है। उन्होंने कई उर्दू अख़बारों के संपादन किए। उनमें हमदम, हमदर्द, हक़ीक़त उल्लेखनीय हैं। उन्होंने “सिद्क़” के नाम से अपना अख़बार भी जारी किया।

मौलाना की रचनाओं और अनुवादों का अध्ययन कीजिए तो यह तथ्य स्पष्ट होजाता है कि भाषा पर उन्हें पूरी महारत हासिल है। अनुवाद करते हैं तो इस तरह कि उस पर मूल रचना का भ्रम होता है। यही अनुवाद की विशेषता है। उनकी भाषा सादा, सरल और प्रवाहपूर्ण होती है। इसके बावजूद पूरी कोशिश करते हैं कि भाषा का सौन्दर्य बरक़रार रहे। कहीं बोली ठोली की भाषा इस्तेमाल करते हैं, कहीं पाठ के बीच में ख़ुद ही सवाल करते हैं और ख़ुद ही जवाब देते जाते हैं। विषय के अनुसार शब्दावली बदलती रहती है। दर्शनशास्त्र में विशेष रूचि इसे अधिक सुसंगत और तर्कयुक्त बनाती है।

फ़लसफ़-ए-जज़्बात, फ़लसफ़-ए-इज्तिमा, मुकालमात-ए-बर्कले उनकी यादगार कृतियाँ हैं।

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