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گیبریل گارشیا مارکیز6 مارچ 1927ء کولمبیا ، میں پیدا ہوئے۔وہ لاطینی امریکہ کے ناول نگار ، صحافی اور مصنف تھے۔ گیبریئل مارکیز ہسپانوی زبان کے بہترین مصنفوں میں سے ایک تھے اور ان کا ناول ’ون ہنڈرڈ یئرز آف سولیچیوڈ‘ (تنہائی کے سو سال) دنیا بھر میں بہت معروف ہے۔ 1967ء میں شائع ہونے والے اس ناول کی تین کروڑ جلدیں فروخت ہو چکی ہیں۔ مارکیز کو 1982ء میں ادب کا نوبل انعام دیا گیا۔زیر نظر کتاب میں اسی عالم ادب کے اس عظیم ناول نگار اردو کے عام قاری کو متعارف کرایا گیا ہے۔اس کتاب کو تین بابوں میں تقسیم کیا گیا ہے ، پہلے باب میں ، مارکیز کی سوانح اور اس کی ندگی میں پیش آئے واقعات پر روشنی ڈالی گئی ہے۔دوسرے باب میں ،مارکیز کے فن اور اس کے دور مین لاطینی امریکن فکشن کے عمومی رجحانات سے بحث کی گئی ہے ، جبکہ تیسرے باب میں ، مارکیز کی افسانوی اور غیر افسانوئ یا صحافتی تحریروں کا جائزہ پیش کیا گیا ہے۔
ख़ालिद जावेद उर्दू कथा-साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर हैं, वह समकालीन उर्दू साहित्य के जाना पहचाना नाम हैं। जीवन की उदासीनता के पीछे का बारीक विश्लेषण उनकी रचनाओं में महत्पूर्ण है। 9 मार्च, 1963 को उत्तर प्रदेश के बरेली में जन्मे ख़ालिद जावेद दर्शनशास्त्र और उर्दू साहित्य पर समान अधिकार रखते हैं। उन्होंने रूहेलखंड विश्विद्यालय में पाँच साल तक दर्शनशास्त्र का अध्यापन कार्य किया है और वर्तमान में जामिया मिल्लिया इस्लामिया में उर्दू के प्रोफ़ेसर हैं। उनके तीन कहानी-संग्रह 'बुरे मौसम में', 'आख़िरी दावत' एवं तफ़रीह की एक दोपहर' और तीन उपन्यास 'मौत की किताब', 'ने'मतख़ाना' तथा' एक ख़ंजर पानी में' प्रकाशित हो चुके हैं एवं चौथा उपन्यास 'अरसलान और बहज़ाद' शीघ्र ही प्रकाशित होने वाला है। उनके उपन्यास 'नेमत खाना' के अंग्रेजी अनुवाद को प्रतिष्ठित साहित्यिक पुरस्कार 'जेसीबी प्राइज़ फॉर लिटरेचर 2022' के लिए भारतीय भाषाओं में से चुने गए पांच उपन्यासों में शामिल किया गया है। प्रो. बाराॅं फारूक़ी द्वारा इस उपन्यास का अंग्रेजी में 'द पैराडाइज़ ऑफ़ फ़ूड ' के नाम से अनुवाद किया गया है। उनके एक और उपन्यास 'मौत की किताब' का अनुवाद डॉ. ए नसीब खान 'बुक ऑफ़ डेथ' के रूप में कर चुके हैं।
कहानी 'बुरे मौसम' के लिए उन्हें 'कथा-सम्मान' मिल चुका है| वर्जीनिया में आयोजित वर्ल्ड लिटरेचर कॉफ़्रेंस-2008 में उन्हें कहानी पाठ के लिए आमंत्रित किया गया था। 2012 में कराची लिटरेचर फ़ेस्टिवल में भी उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया| उनकी कहानी 'आख़िरी दावत' अमेरिका की प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी के साउथ एशियन लिटरेचर डिपार्टमेंट के कोर्स में शामिल है। उन्हें देशभर के प्रमुख साहित्यिक संस्थानों द्वारा कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में इनकी कहानियों का अनुवाद हिंदी, अंग्रेज़ी, जर्मन अनेक भाषाओं में होता रहा है। इनकी दो आलोचना की पुस्तकें 'गैर्ब्रियल गार्सिया मारकेज़' और 'मिलान कुंदेरा' भी प्रकाशित हो चुकी हैं। इनके अलावा 'कहानी मौत और आख़िरी बिदेसी ज़बान' (साहित्यिक आलेख), 'फ़लसफ़ा जमालियात', नफ़सियात और अदबी तंक़ीद','मार्क्सिस्म और अदबी तंक़ीद' पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्होंने सत्यजीत रे की कहानियों का अनुवाद भी किया है।
ख़ालिद जावेद न सिर्फ़ बेहतरीन फिक्शन निगार हैं बल्कि अपने अन्य मालूमाती एवं जादुई गद्य आलेखों से पाठकों को आश्चर्यचकित होने पर मजबूर कर देते हैं। उनकी इस अद्भुत एवं असाधारण कला के पीछे निःसंदेह उनका गहन अध्ययन एवं चिंतन है। उनके विभिन्न ग़ैर अफ़सानवी आलेखों से इस बात का बहुत अच्छे से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि ख़ालिद जावेद फिक्शन के बहुत गंभीर, अनुभवी एवं बुद्धिमान पाठक हैं। इतने बुद्धिमान कि तिलिस्मी चौखट पार करने से बचाव करते हुए वह पाठक ही रहते हैं, आलोचक नहीं बनते। उन्होंने 'गैर्ब्रियल गार्सिया मारकेज़' और 'मिलान कुंदेरा'जैसे ट्रेंड सेटर फिक्शन निगारों पर जो परिचयात्मक पुस्तकें लिखी हैं वह केवल परिचयात्मक बल्कि उनकी गहरी अंतर्दृष्टि का पता देती हैं। नए उपन्यास के वैश्विक परिदृश्य की गहरी जानकारी उनके यहां सतह पर बिखरी हुई या औपचारिक अनुसरण के रूप में दिखाई नहीं देती, ख़ालिद जावेद ने उनसे उपन्यासकार की अंतर्दृष्टि का पाठ प्राप्त किया है।
Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi
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