aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
हाजिर देहलवी, रघुनाथ सिंह (1884-1922) देहली के एक खत्रीख़ानदान के चश्म-ओ-चराग़ थे। घराने के एक बुज़ुर्ग सरदार सिंह ‘हसीब से फ़ारसी और अरबी पढ़ी। कुछ दिन भोपाल में नौकरी की, फिर देहली आ कर हकीमी करने लगे जो ख़ानदानी पेशा था। फ़ारसी में भी शेर कहते थे। ड्रामे भी लिखे।
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