aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
अदब में कम लोग ऐसे होते हैं जो स्रजनात्मक और आलोचनात्मक दोनों स्तर पर एक ही पहचान और स्थान रखते हैं. ख़ुर्शीद उल इस्लाम उन्हीं लोगों में से हैं. आलोचना और रचना दोनों ही मैदान में ख़ुर्शीद उल इस्लाम ने अहम कारनामे अंजाम दिये हैं. उनकी किताब ‘ग़ालिब तक़लीद और इज्तिहाद’ और आलेखों का संग्रह ‘तन्कीदें’ महत्वपूर्ण आलोचनात्मक पुस्तकों के रूप में देखी गयी हैं. इन किताबों ने अपने समकालिकों में ख़ुर्शीद उल इस्लाम की पहचान एक आलोचक के रूप में बनाई. ख़ुर्शीद उल इस्लाम की आलोचना शैली और चिंतन का ढंग अब्दुर रहमान बिजनौरी और शिब्ली नोमानी के सामान है. ख़ुर्शीद उल इस्लाम का रचनात्मक चिंतन भी उतना ही अहम है. उन्होंने नज़्में और ग़ज़लें दोनों ही कही हैं. उनकी शाइरी और ख़ासकर नज़्मों में एक गहरी दार्शनिक चिंतन दौड़ती हुई नज़र आती है. ‘शाखे
निहाल-ए-ग़म’ के नाम से काव्य संग्रह प्रकाशित हुआ.
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