aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
اردو کی مشہور ترقی پسند شاعرہ عزیز بانو داراب وفا 23 اگست 1926 کو بدایوں میں پیدا ہوئیں ۔ ان کا تعلق شری نگر کے درابو خاندان سے تھا، جہاں ان کے اجداد فرانس کے ساتھ دوشالوں کی تجارت کرتے تھے۔ انہوں نے 23 سال کی عمر میں شعر کہنا شروع کیا، شروع میں ان کا رجحان افسانے اور ناول لکھنے کی طرف تھا۔ مرحومہ نے اپنا دیوان چھپوانے کی طرف کبھی توجہ نہ دی، وہ تو شعر اپنی تسلی و تشفی کے لئے کہتی تھیں۔ انہوں نے ہندوستان اور بیرون ملک کے مشاعروں میں شرکت بھی کی۔ ان کا زیر نظر شعری مجموعہ "گونج" کے نام سے ان کی وفات کے بعد شائع ہوا۔ انہوں نے اپنے شعری اظہار میں نسائی جذبات کو جگہ دی ہے۔ ان کی شاعری پر جدیدیت کا اثر جھلکتا ہے۔ کلاسیکل اور روایتی شاعری سے بھی ان کا کلام مزین ہیں ۔ان کی شاعری میں زندگی کے عمیق مطالعے کے نتیجے میں پیدا ہونے والی ندرت ، وسعت اور تنوع نظر آتا ہے۔
लखनऊ की मशहूर शायरा अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा, मशहूर नावेल निगार क़ुर्रतुल ऐन हैदर की दोस्त थीं। क़ुर्रतुल ऐन हैदर ने जो ऐनी आपा के नाम से मशहूर हैं अपने नावेल 'आग का दरिया' में हमीद बानो का जो किरदार पेश किया है दरअसल अज़ीज़ बानो का ही किरदार है।
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा 23 अगस्त 1926 को बदायूँ में पैदा हुईं। शायरी के आलावा अफ़साना और नावेल भी लिखीं लेकिन अपना कलाम कहीं शाए नहीं कराया। जो कुछ भी लिखा, अपने ज़हनी सुकून के लिए लिखा, शोहरत से कोई दिलचस्पी न थी। उन की हवेली के सहन में एक अँधा कुआँ था, जो कुछ भी लिखतीं उस अंधे कुँए में डाल देती थीं। उन दिनों जब इंदिरा गाँधी सूचना एवं प्रसारण मंत्री थीं, बेगम सुल्ताना हयात ने इंदिरा गाँधी की सदारत में शाइरात का एक मुशायरा किया। इंदिरा गाँधी को अज़ीज़ बानो की ग़ज़लें बहुत पसंद आईं, दाद-ओ-तहसीन से नवाज़ा और बड़ी हौसला अफ़ज़ाई की। देखते देखते शोहरत फ़ैल गई। 2005 में वफ़ात पाई। 2009 में उनका शेरी मज्मूआ सय्यद मोईनुद्दीन अल्वी ने गूँज के नाम से शाए किया।
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