aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
सफ़ी औरंगाबादी, बहाउद्दीन, बहबूद अ’ली (1893-1954)मनमौजी आदमी थे। उन के पिता उन्हें हकीम बनाना चाहते थे मगर उन्होंने ता’लीम पूरी नहीं की और कहीं नौकरी करने लगे। कई नौकरियाँ करने के बा’द सब कुछ छोड़ दिया और अपने शागिर्दों की मदद पर तकिया किया। शादी नहीं की।
Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi
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