aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
अमजद हैदराबादी का नाम सैयद अहमद हुसैन था। अमजद तख़ल्लुस करते थे। उनके पिता सूफ़ी सैयद रहीम अली बड़े पहुंचे हुए बुज़ुर्ग थे। उनका देहांत अमजद के बचपन में ही हो गया था। मकतब की आरम्भिक शिक्षा के बाद मदरसा निज़ामिया हैदराबाद में दर्स-ए-निज़ामिया की शिक्षा प्राप्त की। अरबी-फ़ारसी ज़बानों में महारत हासिल की। अमजद ने आर्थिक ज़रूरतों के अधीन पहले दारुलउलूम स्कूल में अध्यापक के रूप में नौकरी की बाद में रियासत हैदराबाद के प्रबंधक नियुक्त हुए। 1908 में मूसी नदी के सैलाब में उनकी माता बीवी बच्चे काल के गाल में समा गये। यह दुर्घटना अमजद हैदराबादी के लिए बहुत जान लेवा साबित हुई।
अमजद हैदराबादी की शोहरत की बुनियाद उनकी रुबाइयाँ हैं। फ़रमान फ़तहपुरी के अनुसार “अमजद प्रथम व आख़िर रुबाई के शायर हैं”, अमजद ने रुबाई विधा में प्रचूर मात्रा में लेखन किया और इस विधा के मान को बुलंद किया। अमजद की रुबाइयों के विषय सदाचारी, अध्यात्मिक और आदर्शों पर आधारित हैं।
Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi
Get Tickets