aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
मूूल नाम सैयद मुहम्मद हुसैनी। ख़्वाजा बंदानवाज (भक्त वत्सल) और लंबे बाल रखने की वजह से गेसूदराज़ के नाम से प्रसिद्ध। इनेक पिता सैयद यूसुफ़ शाह जाने माने सूफ़ी थे जो दिल्ली के प्रसिद्ध चिश्ती संत ख़्वाजा निजामुद्दीन औलिया के खलीफ़ा शेख़़ बुरहानुद्दीन गरीब के साथ दकन आए थे। बंदानवाज़ की पैदाइश। 1318 के क़रीब दिल्ली में हुई। बालपन में ही पिता के साथ दकन आए। पांच वर्ष की अल्पायु में पिता का निधन हो गया और बंदानवाज अपनी माँ के साथ वापस दिल्ली आ गए।
दिल्ली में ही हज़रत ख़्वाजा निजामुद्दीन औलिया के ख़लीफ़ा ख़िलाफ़त पायी। दिल्ली में इनकी काफ़ी प्रतिष्ठा थी। अस्सी साल के थे जब 1398 में दिल्ली मैं तैमूरलंग ने आक्रमण किया और दिल्ली में तबाही मचाई। उजड़े दयार को छोड़कर पीर बंदनवाज गुजरात होते हुए दकन (दौलताबाद) आ गए। इसमें आधी शताब्दी पहले (1347) हसन गंगू अलाउद्दीन हसन बहमन शाह ने बहमनी राज्य स्थापित किया था। हसन के पोते तथा आठवें उत्तराधिकारी फिरोजशाह (1397-1422) ने अपने दारा द्वारा स्थापित राजधानी गुलबर्गा में ख़्वाजा साहब को बड़े सम्मान के साथ बुलाया, जहाँ 105 वर्ष की दीघार्यु में (1423) में इनका देहांत हुआ।
ख्वाज़ा बंदानवाज़ ने कई पुस्तकें लिखी हैं। उनकी निम्न पुस्तकें दकनी हिंदी में हैं- (1) चक्कीनामा(पद्य), (2) मेराजनामा (गद्य) और (3) सहपारा (गद्य)।
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