Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

संपादक : हक़्क़ानी अल-क़ासिमी, सलाहुद्दीन परवेज़

अंक : Shumara Number-010,011

खंड संख्या : 3

प्रकाशक : सलाहुद्दीन परवेज़

मूल : दिल्ली, भारत

भाषा : उर्दू

पृष्ठ : 419

सहयोगी : ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती यूनिवर्सिटी, लखनऊ

इस्तिआरा
For any query/comment related to this ebook, please contact us at haidar.ali@rekhta.org

पत्रिका: परिचय

"इस्तिआरा" दिल्ली से प्रकाशित होने वाली त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका थी, जिसकी शुरुआत 2000 में हुई थी। इस्तिआरा के संपादक सलाउद्दीन परवेज़, हक़ानी अल-कासमी और योगेंद्र बाली थे, जबकि सब-एडिटर शबिस्तां खलील थीं। इस पत्रिका के प्रकाशक सलाउद्दीन परवेज़ थे। यह पत्रिका लगभग 400 पृष्ठों की थी, जिसमें विभिन्न विषयों को शामिल किया जाता था। इसकी सामान्य विषय-सूची इस प्रकार थी: आधार/संपादकीय प्रश्न-उत्तर अनुभाग अध्याय: समालोचना (क्रिटिसिज्म) अध्याय: ग़ज़ल अध्याय: कहानी अध्याय: श्रद्धांजलि (विस्मृत लेखक और कवि) अध्याय: आधुनिक और प्राचीन साहित्य अध्याय: विविध अध्याय: कविता (नज़्म) अध्याय: तुलनात्मक अध्ययन अध्याय: संबंध (साहित्यिक जोड़-तोड़) विशेष अनुभाग अंतिम पृष्ठ पत्रिका की कीमत प्रति अंक ₹100 थी, यानी सालाना ₹400, जिसे बाद में बढ़ाकर ₹150 कर दिया गया। सलाउद्दीन परवेज़ ने लिखा था कि इस्तिआरह उनका और उनके मित्र सिराज मुनिर का एक साझा सपना था, लेकिन दुर्भाग्यवश सिराज मुनिर का निधन हो गया, इसलिए उन्होंने यह पत्रिका सिराज मुनिर की स्मृति में समर्पित कर दी। हर अंक के कवर पर लिखा होता था: "सिराज मुनिर की याद में"। पत्रिका का नारा था: "साहित्य की चुप्पी को तोड़ती तीसरी आवाज़"। हक़ानी अल-कासमी ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि इस्तिआरह का उद्देश्य सिर्फ साहित्य में मौजूद ठहराव और सृजनात्मक जड़ता को तोड़ना था। शुरू से ही इस्तिआरह एक बहुत विस्तृत पत्रिका थी, और इसके विषय भी बहुत विविध थे। लेकिन बारीकी से अध्ययन करने पर यह स्पष्ट होता है कि इसकी प्रवृत्ति आलोचना, कविता और हिंदू शास्त्रीय साहित्य की ओर अधिक थी। पत्रिका का पहला अंक हज़रत अली और दूसरा अंक हज़रत फातिमा को समर्पित था। साथ ही, हर अंक की शुरुआत "नहजुल बलाग़ा" से चयनित अंश से होती थी, जिसके कारण इस पर शिया विचारधारा फैलाने का आरोप लगाया गया। इस पत्रिका में अटल बिहारी वाजपेयी और वी. पी. सिंह जैसी विवादास्पद हस्तियों की रचनाएँ भी प्रकाशित होती थीं। कभी इसे फ्रीमेसन आंदोलन का प्रवक्ता कहा गया, तो कभी समकालीन अखबारों और पत्रिकाओं में इसके खिलाफ अभियान चलाए गए। कई लोगों ने इसे एक विशिष्ट विचारधारा की पत्रिका बताया। इन विवादों, प्रसिद्ध साहित्यकारों के संरक्षण और अपनी उच्च गुणवत्ता वाली प्रस्तुति के कारण इस्तिआरह को बहुत प्रसिद्धि मिली। सलाउद्दीन परवेज़ के समाज, सिनेमा, राजनीति और कला जगत से गहरे संबंध थे। पत्रिका में भारत के राष्ट्रपति ए. पी. जे. अब्दुल कलाम का एक पत्र प्रकाशित हुआ था, जिसमें उन्होंने सलाउद्दीन परवेज़ को इस्तिआरा के लिए बधाई दी थी।

.....और पढ़िए
For any query/comment related to this ebook, please contact us at haidar.ali@rekhta.org

संपादक की अन्य पुस्तकें

संपादक की अन्य पत्रिकाएं यहाँ पढ़ें।

सबसे लोकप्रिय पत्रिकाएँ

सर्वाधिक लोकप्रिय पत्रिकाओं के इस तैयार-शुदा संग्रह को ब्राउज़ करें और अगली सर्वश्रेष्ठ पठन की खोज करें। आप इस पृष्ठ पर लोकप्रिय पत्रिकाओं को ऑनलाइन ढूंढ सकते हैं, जिन्हें रेख़्ता ने उर्दू पत्रिका के पाठकों के लिए चुना है। इस पृष्ठ में सबसे लोकप्रिय उर्दू पत्रिकाएँ हैं।

पूरा देखिए
बोलिए