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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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लेखक: परिचय

जहीर, लाला प्यारे लाल (1844/1850-1874) मिर्ज़ा ग़ालिब के शागिर्दों में इन का एक ख़ास अन्दाज़ था। मज्ज़ूबों की तरह हर वक़्त दुनिया-जहान से दूर, अपने आप में गुम और शाइ’री में ग़र्क़ रहते थे। भरी जवानी में हमेशा के लिए ख़ामोश हो गए।

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