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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

लेखक : आबिद सुहैल

प्रकाशक : उर्दू अकादमी, दिल्ली

प्रकाशन वर्ष : 2012

भाषा : Urdu

श्रेणियाँ : आत्मकथा

पृष्ठ : 714

सहयोगी : ग़ालिब अकेडमी, देहली

jo yad raha
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लेखक: परिचय

आबिद सुहैल मुमताज़ अफ़्साना निगार और एक बाकमाल पत्रकार के रूप में जाने जाते हैं। उनकी सारी ज़िंदगी अदब और पत्रकारिता के द्वारा समाज की नकारात्मक शक्तियों  से मुक़ाबला  करते गुज़री। वो कम्युनिस्ट पार्टी के सक्रिय सदस्यों में शामिल रहे और व्यवहारिक स्तर पर पार्टी के वैचारिक विस्तार की सरगर्मीयों का हिस्से बने रहे। नेशनल हेराल्ड और क़ौमी आवाज़ (अंग्रेज़ी और उर्दू दैनिक) में कार्यरत रहे और यादगार सहाफ़ती ख़िदमात अंजाम दीं।
17 नवंबर 1932 को ओरई ज़िला जालौन (उतर प्रदेश) में पैदा हुए। ओरई और भोपाल में आरम्भिक शिक्षा प्राप्त की। उसके बाद लखनऊ यूनीवर्सिटी से दर्शनशास्त्र में एम.ए.किया और फिर उसी शहर में सारी ज़िंदगी बसर की।
आबिद सुहैल ने यूनीवर्सिटी के ज़माने में ही अफ़साने लिखने शुरू कर दिये थे और बहुत जल्द उन्हें एक संजीदा अफ़्साना निगार के तौर पर भी तस्लीम किया जाने लगा था। पत्रकारिता का अनुभव उनकी कहानियों की संरचना में बहुत सहायक रहा। उनकी कहानियां समाज के बराह-ए-रास्त  अनुभवों से रचित  सृजनात्मक चिन्तन से संयोजित होती हैं।
अफ़्सानों के इलावा उन्होंने मशहूर इल्मी-ओ-अदबी शख़्सियात के रेखाचित्र भी लिखे।जो ‘खुली किताब’ के नाम से  पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुआ।
ज़िंदगी के आख़िरी बरसों में उन्होंने ‘जो याद रहा के नाम से’ अपनी आत्मकथा लिखी। जिसकी गिनती उर्दू की कुछ अच्छी  आत्म कथाओं में होती है। इसके इलावा फ़िक्शन की आलोचना पर लिखे गये उनके आलेख भी क़दर की निगाह से देखे गये।

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