Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

लेखक : परवीन शाकिर

प्रकाशक : एम. आर. पब्लिकेशंस, नई दिल्ली

मूल : नई दिल्ली, भारत

प्रकाशन वर्ष : 2008

भाषा : Urdu

श्रेणियाँ : शाइरी

उप श्रेणियां : ग़ज़ल

पृष्ठ : 98

ISBN संख्यांक / ISSN संख्यांक : 81-88413-30-5

सहयोगी : हिमालयन एजुकेशन मिशन लाइब्रेरी ऐंड रिसर्च सेंटर, राजौरी (जम्मू)

kaf-e-aina
For any query/comment related to this ebook, please contact us at haidar.ali@rekhta.org

लेखक: परिचय

परवीन शाकिर नए लब-ओ-लहजा की ताज़ा बयान शायरा थीं जिन्होंने मर्द के संदर्भ से औरत के एहसासात और भावनात्मक मांगों को सूक्ष्मता से व्यक्त किया। उनकी शायरी न तो रोने पीटने वाली पारंपरिक इश्क़िया शायरी है और न खुल खेलने वाली रूमानी शायरी। भावना व एहसास की शिद्दत और उसका सादा लेकिन कलात्मक वर्णन परवीन शाकिर की शायरी की विशेषता है। उनकी शायरी विरह और मिलन की स्पर्धा की शायरी है जिसमें न विरह मुकम्मल है और न मिलन। भावनाओं की सच्चाई, रख-रखाव की नफ़ासत और शब्दों की कोमलता के साथ परवीन शाकिर ने उर्दू के स्त्री काव्य में एक मुमताज़ मुक़ाम हासिल किया। गोपी चंद नारंग के अनुसार नई शायरी का परिदृश्य परवीन शाकिर के दस्तख़त के बग़ैर अधूरा है।

परवीन शाकिर की शायरी पर तब्सिरा करते हुए, उनके संरक्षक अहमद नदीम क़ासमी का कहना था कि परवीन की शायरी ग़ालिब के शे’र “फूँका है किस ने गोश-ए-मोहब्बत में ऐ ख़ुदा/ अफ़सून -ए-इंतज़ार-ए-तमन्ना कहें जिसे” का फैलाव है। उनका कहना था कि तमन्ना करने, यानी इंतज़ार करते रहने के इस तिलिस्म ने होमर से लेकर ग़ालिब तक की तमाम ऊंची, सच्ची और खरी शायरी को इंसान के दिल में धड़कना सिखाया और परवीन शाकिर ने इस तिलिस्मकारी से उर्दू शायरी को सच्चे जज़्बों की इन्द्रधनुषी बारिशों में नहलाया।

परवीन शाकिर महिला शायरों में अपने अनोखे लब-ओ-लहजे और औरतों के भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक समस्याओं को पेश करने के कारण उर्दू शायरी को एक नई दिशा देती नज़र आती हैं। वो बेबाक लहजा इस्तेमाल करती हैं, और इंतहाई जुरअत के साथ अत्याचार और हिंसा के ख़िलाफ़ प्रतिरोध करती नज़र आती हैं। वो अपने जज़बात-ओ-ख़्यालात पर शर्म-ओ-हया के पर्दे नहीं डालतीं। उनके विषय सीमित हैं, उसके बावजूद पाठक को उनकी शायरी में नग़मगी,तजुर्बात की सदाक़त, और ख़ुशगवार ताज़ा बयानी मिलती है।

परवीन शाकिर 24 नवंबर 1952 को कराची में पैदा हुईं। उनका असल वतन बिहार के ज़िला दरभंगा में लहरियासराय था। उनके वालिद शाकिर हुसैन साक़िब जो ख़ुद भी शायर थे, पाकिस्तान स्थापना के बाद कराची में आबाद हो गए थे। परवीन कम उमरी से ही शायरी करने लगी थीं, और इसमें उनको अपने वालिद की हौसला-अफ़ज़ाई हासिल थी। परवीन ने मैट्रिक का इम्तिहान रिज़विया गर्ल्स स्कूल कराची से और बी.ए सर सय्यद गर्ल्स कॉलेज से पास किया। 1972 में उन्होंने अंग्रेज़ी अदब में कराची यूनीवर्सिटी से एम.ए की डिग्री हासिल की, और फिर भाषा विज्ञान में भी एम.ए पास किया। शिक्षा पूरी करने के बाद वो अबदुल्लाह गर्ल्स कॉलेज कराची में बतौर टीचर मुलाज़िम हो गईं। 1976 में उनकी शादी ख़ाला के बेटे नसीर अली से हुई जो मिलिट्री में डाक्टर थे। ये शादी परवीन की पसंद से हुई थी, लेकिन कामयाब नहीं रही और तलाक़ पर ख़त्म हुई। डाक्टर नसीर से उनका एक बेटा है। कॉलेज में 9 साल तक पढ़ाने के बाद परवीन ने पाकिस्तान सिविल सर्विस का इम्तिहान पास किया और उन्हें 1982 में सेकंड सेक्रेटरी सेंट्रल बोर्ड आफ़ रेवेन्यु नियुक्त किया गया। बाद में उन्होंने इस्लामाबाद में डिप्टी कलेक्टर के फ़राइज़ अंजाम दिए। मात्र 25 साल की उम्र में उनका पहला काव्य संग्रह “ख़ुशबू” मंज़र-ए-आम पर आया तो अदबी हलक़ों में धूम मच गई। उन्हें इस संग्रह पर आदम जी ऐवार्ड से नवाज़ा गया।

परवीन की शख़्सियत में बला का आत्म विश्वास था जो उनकी शायरी में भी झलकती है। उसी के सहारे इन्होंने ज़िंदगी में हर तरह की मुश्किलात का सामना किया,18 साल के अर्से में उनके चार संग्रह ख़ुशबू, सदबर्ग, ख़ुदकलामी और इनकार प्रकाशित हुए। उनका समग्र “माह-ए-तमाम” 1994 में प्रकाशित हुआ। 1985 में उन्हें डाक्टर मुहम्मद इक़बाल ऐवार्ड और 1986 में यू एस आई एस ऐवार्ड मिला। इसके अलावा उनको फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ इंटरनेशनल ऐवार्ड और मुल्क के वक़ीअ ऐवार्ड “प्राइड ऑफ़ परफ़ार्मैंस” से भी नवाज़ा गया। 26 दिसंबर 1994 को एक कार दुर्घटना में उनका देहावसान हो गया।

परवीन के पहले संग्रह “ख़ुशबू” में एक नौ उम्र लड़की के रूमान और जज़्बात का बयान है जिसमें उसने अपनी निजी ज़िंदगी के अनुभवों को गहरी फ़िक्र और वृहत कल्पना में समो कर औरत की दिली कैफ़ियात को उजागर किया है। उनके यहां बार-बार ये जज़्बा उभरता दिखाई देता है कि वो न सिर्फ़ चाहे जाने की आरज़ू करती हैं बल्कि अपने महबूब से ज़बानी तौर पर भी इसका इज़हार चाहती हैं। परवीन की शायरी शबाब की मंज़िल में क़दम रखने वाली लड़की और फिर दाम्पत्य जीवन के बंधन में बंधने वाली औरत की कहानी है। उनके अशआर में नई पौध को एक सचेत संदेश देने की कोशिश है, जिसमें विवाह की ग़लत धारणा और औरत पर मर्द के एकाधिकार को चैलेंज किया गया है। परवीन ने बार-बार दोहराए गए जज़्बों को दोहराने वाली शायरी नहीं की। उन्होंने शरमा कर या झिझक कर अपने पुर्वीपन की लाज रखने की भी कोशिश नहीं की। उन्होंने शायरी से श्रेष्ठता को ख़ारिज कर के उर्दू की स्त्री काव्य को अपनी बात, अपने अंदाज़ में कहने का हौसला दिया।

.....और पढ़िए
For any query/comment related to this ebook, please contact us at haidar.ali@rekhta.org

लेखक की अन्य पुस्तकें

लेखक की अन्य पुस्तकें यहाँ पढ़ें।

पूरा देखिए

लोकप्रिय और ट्रेंडिंग

सबसे लोकप्रिय और ट्रेंडिंग उर्दू पुस्तकों का पता लगाएँ।

पूरा देखिए

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

Get Tickets
बोलिए