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रद करें डाउनलोड शेर

लेखक : रज़ा हमदानी, फ़ारिग़ बुख़ारी

संस्करण संख्या : 001

प्रकाशक : नया मकतबा, पेशावर

मूल : पेशावर, पाकिस्तान

भाषा : Urdu

श्रेणियाँ : शाइरी, अनुवाद

उप श्रेणियां : अनुवाद, शायरी

पृष्ठ : 96

सहयोगी : जामिया हमदर्द, देहली

khushhal khan ke afkar
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लेखक: परिचय

रज़ा हमदानी 25 दिसम्बर 1910 को पेशावर में पैदा हुए. वह उर्दू के साथ फ़ारसी, हिन्दको और पश्तो का अच्छा ज्ञान रखते थे और इन भाषाओं में शे’र भी कहते थे. इसी वजह से उर्दू शायरी में उनका डिक्शन उनके बहुभाषी अनुभव से प्रभावित दिखाई देता है. रज़ा हमदानी ने शायरी में भाषा और विषय दोनों स्तर पर अपने वक़्त की चेतना को दर्शाया है. उनके काव्य संग्रह ‘रगे मीना’ और ‘सलीबे फ़िक्र’ के नाम से प्रकाशित हुए.
रज़ा हमदानी ने शायरी के साथ कई साहित्यिक पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया और फिल्मों के लिए गीत भी लिखे. इसके अलावा साहित्यिक, सांस्कृतिक, एतिहासिक, जीवनी और मज़हबी विषयों पर कई किताबें लिखीं. उन खिदमात के लिए उन्हें राइटर गिल्ड, अबासियन आर्ट कौंसिल और यूनेस्को की तरफ़ से सम्मानों से भी नवाज़ा गया. 10 जुलाई 1999 को पेशावर में देहांत हुआ.

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फ़ारिग़ बुख़ारी का असली नाम अहमद शाह था। उनका जन्म 11 नवंबर 1917 को पेशावर में हुआ। इंटरमीडिएट तक की शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने पूर्वी भाषाओं की कई परीक्षाएँ पास कीं। फ़ारिग़ बुख़ारी वैचारिक रूप से प्रगतिशील आंदोलन से जुड़े थे, लेकिन इस वैचारिक जुड़ाव ने उनकी रचनात्मकता को सीमित नहीं किया। वह विषय, भाषा और काव्य रूपों में नए-नए प्रयोग करते रहे। उनका एक प्रमुख प्रयोग ग़ज़ल के फ़ाॅर्म में था। उन्होंने अपने काव्य संग्रह "ग़ज़लिया" में ग़ज़ल की शैली और तकनीक को एक नए अंदाज़ में इस्तेमाल किया।

फ़ारिग़ ने उर्दू साहित्यिक पत्रकारिता में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे मासिक पत्रिका 'नग़्मा-ए-हयात' और साप्ताहिक 'शबाब' के संपादक रहे, और 'संग-ए-मील' नाम से एक साहित्यिक पत्रिका भी निकाली। 

फ़ारिग़ बुख़ारी की प्रकाशित कृतियाँ हैं: 'ज़ेर-ओ-बम', 'शीशे के पैरहन', 'ख़ुशबू का सफ़र', 'ग़ज़लिया', 'अदबियात-ए-सरहद', 'पश्तो के लोकगीत', 'सरहद के लोकगीत', 'बाचा ख़ान', 'पश्तो शायरी', 'रहमान बाबा के अफ़कार', 'जुर्रत-ए-आशिक़ाँ'।

फ़ारिग़ बुख़ारी को उनकी साहित्यिक और सांस्कृतिक सेवाओं के लिए पाकिस्तान सरकार ने 'सदारती तमग़ा बराए-हुस्न-ए-कारकर्दगी' से सम्मानित किया। 13 अप्रैल 1997 को पेशावर में उनका निधन हुआ।

 


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