Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

लेखक : शाह अकबर दानापुरी

प्रकाशक : मतबा कायस्थ आनंद राम, आगरा

मूल : आगरा, भारत

प्रकाशन वर्ष : 1901

भाषा : Urdu

श्रेणियाँ : इतिहास

उप श्रेणियां : इस्लामिक इतिहास

पृष्ठ : 280

सहयोगी : जामिया हमदर्द, देहली

kitab mubarak tareekh-e-arab
For any query/comment related to this ebook, please contact us at haidar.ali@rekhta.org

लेखक: परिचय

हज़रत शाह मोहम्मद अकबर दानापुरी 1843 में मोहल्ला नई बस्ती (अकबराबाद) आगरा में पैदा हुए। मोहम्मद अकबर नाम तख़ल्लुस ‘अकबर’ था। उनके पिता शाह सज्जाद अबुलअलाई दानापुरी अपने चचा-ज़ाद भाई शाह मोहम्मद क़ासिम के साथ रुशद-ओ-हिदायत की तालीम के लिए आगरा में रहने के लिए गए थे। आपके मुरीदों की संख्या लाखों की तादाद में थी जो दुनिया के मुख़्तलिफ़ मुल्कों में फैले हुए थे। उनमें ख़ास-तौर पर पाकिस्तान, बंगलादेश, मक्का-ए-मुकर्रमा, मदीना-ए-मुनव्वरा और ब्रिटेन आदि देशों में अच्छी-ख़ासी तादाद थी।
आपकी शुरूआती तालीम आपके वालिद के बड़े भाई सय्यद शाह मोहम्मद क़ासिम अबुलअलाई के यहाँ हुई थी। जिन्होंने उनको बिस्मिल्लाह-ख़्वानी कराई और उनको ज़ाहिरी तालीम देते रहे। शुरूआती तालीम के बाद एक मज़हबी स्कूल में आपका दाख़िला करा दिया गया और तालीम पूरी करने के बाद उन्होंने अपने चचा हज़रत मोहम्मद क़ासिम दानापुरी के दस्त-ए-हक़-परस्त पर बैअत कर ली। उन्होंने 1281 हिज्री में उनको ख़िलाफ़त से नवाज़ा।
21 साल की उम्र में अपने चचा की पसंद के मुताबिक़ हुसैन मुनअमी दिलावरी की लड़की अहमद बीबी से उनका निकाह हुआ। हज करने के कुछ ही साल के बाद उनकी बीवी का इंतिक़ाल हो गया। इसके बाद तक़रीबन 24 साल तक आप ज़िंदा रहे और हमेशा अल्लाह को याद करने में मशग़ूल रहे और बाक़ी बचे वक़्त में ये लिखने-पढ़ने में मशग़ूल रहते और इबादत, प्रार्थना और लोगों की सेवा में मशग़ूल रह कर अपनी उम्र बिता दी।
शाह मोहम्मद ‘अकबर’ दानापुरी को 1881 ई. में उनके पिता की जगह ख़ानक़ाह-ए-सज्जादिया अबुलअलाई में अपने ख़ानदानी सज्जादा के पद पर शैख़ और आलिम की जमाअत के सामने सज्जादा-नशीनी के पद पर बिठा गया और आप बड़े ही अच्छे तरीक़े से इस ज़िम्मेदारी को अंजाम देते रहे। अपनी सज्जादगी के ज़माने के दरमियान ही हज की यात्रा पर गए और तक़रीबन 6 माह बाद हज से वापस आए। आपने अपने हज के हालात को अपनी शाहकार किताब "अशरफ़-उत-तवारीख़" और "तारीख़-ए-अरब" में इसका ज़िक्र किया है और कुछ दिलचस्प वाक़िआत को बयान भी किया है। उन्होंने ख़ाना-ए-काबा का एक दिलकश नज़ारा इस तरह खींचा है
सियाह-पोश जो काबा को क़ैस ने देखा
हुआ न ज़ब्त तो चला उठा कर लैला
चूँकि आपका तअल्लुक़ ऐसे सूफ़ी ख़ानदान से था जो तसव्वुफ़ के साथ-साथ शेर-ओ-शायरी को भी बहुत पसंद करते थे। इसी मुनासबत और विरासत के चलते यही सब चीज़ें उनके शेर में देखने को मिलती हैं। अपनी शायरी के लिए ये ‘आतिश’ के शागिर्द ‘वहीदुद्दीन’ इलाहाबादी से अपनी शायरी की सलाह लेते रहे और इसमें अपना कमाल भी दिखाया ये भी अजीब इत्तिफ़ाक़ है दोनों अकबर, एक शाह ‘अकबर’ दानापुरी और दूसरे ‘अकबर’ इलाहाबादी दोनों ही ‘वहीद’ इलाहाबादी के शागिर्द हुए। ‘वहीद’ साहब को अपने इन दोनों शागिर्दों पर बड़ा फ़ख़्र था।
यह काफ़ी सादा ज़िंदगी जीते रहे। आप बहुत रहम-दिल थे। काफ़ी शांत प्रवृत्ति के थे। किसी की बुराई न करते थे और न सुनते थे। कभी किसी की शिकायत अपनी ज़बान पर न लाते, हमेशा सब्र का इज़हार करते। दोस्तों-अज़ीज़ों को मोहब्बत की नज़र से देखा करते। अपनी किताबों में भी आपने अपने आलोचकों को अच्छे नाम से याद किया है, हमेशा उनके लिए अच्छी सोच रखते और उन लोगों की तारीफ़ भी किया करते।
शाह अकबर दानापुरी एक ऐसे सूफ़ी थे जो सूफ़ी मत के उसूलों पर अमल भी करते थे इसलिए आपकी शायरी में भी तसव्वुफ़ की झलक साफ़ दिखाई देती है। उनकी शायरी हक़ीक़त और प्रार्थना का एक बड़ा ख़ज़ाना है। शायरी में उस्ताद थे। ग़ज़लों का हर एक शेर तसव्वुफ़ और प्रार्थना के रंग और नूर से रौशन नज़र आता है। आपकी शेर-गोई में सादगी और रवानगी भी ज़्यादा है। उनकी शायरी गुल-ओ-बुलबुल और हिज्र-ओ-विसाल तक ही महदूद न थी बल्कि आपके दिल में मुल्क और क़ौम की ख़ुशहाली का बड़ा ख़याल था इसी कोशिश में ही लगे रहे कि हिन्दुस्तानी क़ौम को जगा कर हर क़िस्म के हुनर सीखने में उनकी आदत डाली जाए ताकि मुल्क की तरक़्क़ी हो और हिन्दुस्तानी क़ौम दुनिया में अव्वल रहे।
आप अपनी उम्र के सातवें दशक में बीमारी की ज़ंजीर में जकड़ने लगे। इलाज के बावुजूद मरज़ बढ़ता रहा। कमज़ोरी और दुर्बलता और बढ़ती गई। उनका यही मरज़ उनकी मृत्यु का कारण बना। आख़िरकार 1909 ई. आपने विसाल फ़रमाया।
आपकी कुछ तसानीफ़ हैं: “नज़्र-ए-महबूब”, “सैर-ए-देहली”, “मलफ़ूज़ात-ए-शाह अकबर दानापुरी”, “अशरफ़-उत-तवारीख़”, “दीवान-ए-तजल्लियात” और “रुहानी गुलदस्ता” ख़ास हैं।

.....और पढ़िए
For any query/comment related to this ebook, please contact us at haidar.ali@rekhta.org

लेखक की अन्य पुस्तकें

लेखक की अन्य पुस्तकें यहाँ पढ़ें।

पूरा देखिए

लोकप्रिय और ट्रेंडिंग

सबसे लोकप्रिय और ट्रेंडिंग उर्दू पुस्तकों का पता लगाएँ।

पूरा देखिए

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

Get Tickets
बोलिए