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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

लेखक : सीमाब अकबराबादी

संस्करण संख्या : 001

प्रकाशक : सीमाब अकेडमी, बम्बई

प्रकाशन वर्ष : 1979

भाषा : Urdu

श्रेणियाँ : शाइरी

उप श्रेणियां : ग़ज़ल

पृष्ठ : 232

सहयोगी : ग़ालिब इंस्टिट्यूट, नई दिल्ली

lauh-e-mahfooz
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पुस्तक: परिचय

سیماب اکبرآبادی کا شمار ان خوش نصیب شعرا میں ہوتا ہے جنہیں گزرتے وقت کے ساتھ فراموش نہیں کیا گیا۔ ان کا شمار بیسویں صدی کے اوائل کے ان شعراء میں ہوتا ہے جنہوں نے مختلف اصناف سخن میں فکری و فنی التزام کے ساتھ کامیاب اور صحت مند تجربے کرکے مقبولیت حاصل کی۔ زیر نظر مجموعہ میں ان کی وہ غیر مطبوعہ غزلیں شامل کی گئی ہیں جو ۴۳ ۱۹ء سے ۵۰ ۱۹ء کے دوران کہی گئیں ۔ اس عرصے میں جو غزلیں جس سال کہی گئیں اسے غزل شروع ہونے کے پہلے ہی لکھ دیا گیا ہے، اس سے یہ واضح ہوجاتا ہے کہ کس سال انہوں نے کون کون سی کتنی غزلیں کہیں۔ یہ تمام غزلیں ان کے انتقال کے تقریبا تین دہائی بعد کتابی شکل میں شائع ہوئیں۔ اس میں ان کی زندگی کے بالکل آخری ایام کی دو غزلیں بھی شامل ہیں جو انہوں نے اپنے زمانہ علالت کے دوران کہی تھی۔ ان کے متعدد دیوان چھپ کر زبان زد عام و خاص ہیں اور اب یہ مجموعہ قارئین کو ذہنی تازگی کا سامان فراہم کرے گا۔

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लेखक: परिचय

मौलवी मोहम्मद हुसैन के बेटे सैयद आशिक़ हुसैन सिद्दीकी को अल्लामा सीमाब अकबर आबादी के नाम से जाना जाता है । वो आगरा  में जन्मे । दाग देहलवी के शिष्य थे । एक समय में वो  घर-घर पढ़े जाते थे । कहते हैं पूरे भारत में उनके हज़ारों शिष्यों थे । किताबों की संख्या भी बहुत ज़्यादा है । पत्रिका शायर के समकालीन उर्दू साहित्य नंबर 1997-98 में उनके किताबों की एक सूची इफ्तिखार इमाम सिद्दीकी ने दी है । गद्य और पद्य की अक्सर शैली में उनकी किताबें मिल जाती हैं  । क़ुरान-पाक का मंजूम अनुवाद किया । ग़ज़ल से ज़्यादा नज़्म पर पर जोर था । कहा जाता है कि छात्र जीवन में वो फ़ारसी पाठ्यक्रम में जितने शेर होते थे उनका मंजूम उर्दू अनुवाद शिक्षकों के सामने रख देते थे । कुछ समय रेलवे में कार्यरत रहे । एक साप्ताहिक पर्चा '' ताज '' और एक मासिक पत्रिका ''शायर '' निकाला । कलीम-ए-अज्म और सिदरतुल मुंतहा  से  '' लौह-ए-महफ़ूज'' तक सीमाब  की काव्य यात्रा खासी  लंबी है । जैबुन्निसा बेगम पर भी उनकी किताब यादगार है । पत्रिका शायर आज भी बम्बई से निकल रहा है । पाकिस्तान में सीमाब अकादमी भी स्थापित है ।

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