aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
"ماہ کامل" یہ مشہورمرثیہ نگارمرزاسلامت علی دبیرکا بغیرنقطوں والامرثیہ ہے جو34صفحات پرپھیلاہواہے، اس کوحضرت مہذب لکھنوی نے مرتب کیاہے، اس کے ناشرسیدحسین میرزامقرب لکھنوی ہیں، جنھوں نے سرفراز قومی پریس لکھنؤسے جنوری 1961 میں شائع کیاہے، اس کے علاوہ آٹھ رباعیات، ایک سلام، یہ بھی غیر منقوط ہیں۔ اس مرثیہ میں مرزا نے دبیرتخلص کے بجائے عطادر اختیار کیا ہے۔
मिर्ज़ा सलामत अली दबीर उर्दू के एक कवि थे। उन्होंने मरसिया लिखने की कला को एक नया मुकाम दिया। उन्हें मीर अनीस के साथ मरसिया निगारी का प्रमुख प्रवक्ता माना जाता है।
मिर्जा सलामत अली का जन्म 1803 में मिर्जा गुलाम हुसैन के घर दिल्ली में हुआ था। उनमें बचपन से ही मरसिया पढ़ने की लगन थी। इसलिए वे प्रसिध मरसिया-गो मीर मुज़फ्फर हुसैन के शिष्य बन गए। जब मीर अनीस फैज़ाबाद से लखनऊ आए तो उनकी आपस में दोस्ती हो गयी।
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