aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
ملفوظات رومی " فیہ ما فیہ" کا اردو ترجمہ ہے جسے مولانا رومی کے بیٹے نے مولانا کے وعظ کے دوران تحریر کیا اس میں زیادہ تر بیانات سلطان بہاء الدین کو مخاطب کر کے بیان کئے گئے ہیں۔ مولانا رومی کی شہرت ان کی مایہ ناز مثنوی سے ہے اور ان کا دیوان غزلیات جو دیوان شمس تبریزی کے نام سے معروف ہے ان کا دوسرا سرمایہ ہے۔ فیہ ما فیہ ایک مدت دراز تک ناپید تھی صرف اس کا تذکرہ کر کے گزر جانے پر ہی اکتفا کیا جاتا تھا مگر مولانا ماجد دریا آبادی نے اس کتاب کو ڈھونڈ نکالا اور اسے چند نسخوں سے تصحیح کے بعد شائع کیا۔
पूरा नाम जलालुद्दीन रूमी. इनकी मसनवी को क़ुरआनी पहलवी भी कहते हैं. इसमें 26600 दो-पदी छंद हैं , कहा जाता है कि निशापुर में इनकी भेंट प्रसिद्ध सूफ़ी संत शेख़ फ़रीदुद्दीन अत्तार से भी हुई थी. फ़रीदुद्दीन अत्तार ने इन्हें अपनी इलाहीनामा की एक प्रति भेंट भी की थी. रूमी की दो शादियाँ हुईं, जिनसे इन्हें दो बेटे और एक बेटी पैदा हुई थी. विनफ़ील्ड के अनुसार रहस्यवाद में रूमी की बराबरी कोई नहीं कर सकता. रूमी शम्स तबरेज़ को अपना मुर्शिद मानते थे और उनकी रहस्यमयी मृत्यु के बाद उन्होंने अपने दीवान का नाम भी अपने मुर्शिद के नाम पर ही रखा. रूमी की मसनवी दुनिया भर में सबसे ज़्यादा पढ़ी जाने वाली किताबों में शुमार होती है|
प्रमुख रचनायें
१. मसनवी
२. दीवान-ए-शम्स तबरेज़
Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi
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