aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
مولانا رومی کی یہ مثنوی مشہورومعروف ہے۔جو مثنوی مولوی معنوی سے بھی معروف ہے۔اس کتاب نے مولانا کے نام کوآج تک زندہ رکھا ہے۔اس تصنیف کی شہرت نے ایران کے تما م تصانیف کوپیچھے چھوڑدیا ہے۔یہ مثنوی فارسی کوایسی مقبولیت نصیب ہوئی۔جو شاید ہی کسی اور تصنیف کو ہوئی ہو۔اس کتاب میں مثنوی میں استعمال ہوئی اصطلاحات و عبارت کو اردو ترجمہ و حواشی کا جامہ پہنایا گیا ہے۔ نیز تسہیل و وضاحت سے مطالب کو پیش کیا گیا ہے،جس سے مثنوی میں بیان ہوئےواقعات کو سمجھنے میں آسانی ہورہی ہے۔اس مثنوی میں تصوف اورعشق الہی کے جملہ موضوعات کو انتہائی سادگی رواں اورعام فہم انداز میں بیان کیا گیا ہے۔عشق الہی اورمعرفت کے انتہائی پیچیدہ و مشکل نکات کو سلجھانے کے لیے مولانا نے سبق آموز حکایات،قصے اور کہانیاں کی مدد لی ہے۔جو کچھ بیان کیا گیا ہے اس کی سند قرآن و حدیث سے دی جاتی ہے۔آٹھ سو سال گزرنے کے بعد بھی اس کی اہمیت وافادیت میں کوئی کمی واقع نہیں آئی۔
पूरा नाम जलालुद्दीन रूमी. इनकी मसनवी को क़ुरआनी पहलवी भी कहते हैं. इसमें 26600 दो-पदी छंद हैं , कहा जाता है कि निशापुर में इनकी भेंट प्रसिद्ध सूफ़ी संत शेख़ फ़रीदुद्दीन अत्तार से भी हुई थी. फ़रीदुद्दीन अत्तार ने इन्हें अपनी इलाहीनामा की एक प्रति भेंट भी की थी. रूमी की दो शादियाँ हुईं, जिनसे इन्हें दो बेटे और एक बेटी पैदा हुई थी. विनफ़ील्ड के अनुसार रहस्यवाद में रूमी की बराबरी कोई नहीं कर सकता. रूमी शम्स तबरेज़ को अपना मुर्शिद मानते थे और उनकी रहस्यमयी मृत्यु के बाद उन्होंने अपने दीवान का नाम भी अपने मुर्शिद के नाम पर ही रखा. रूमी की मसनवी दुनिया भर में सबसे ज़्यादा पढ़ी जाने वाली किताबों में शुमार होती है|
प्रमुख रचनायें
१. मसनवी
२. दीवान-ए-शम्स तबरेज़
Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi
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