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लेखक : मुल्ला अब्दुर्रहमान जामी

संस्करण संख्या : 001

प्रकाशक : मुंशी नवल किशोर, लखनऊ

मूल : लखनऊ, भारत

प्रकाशन वर्ष : 1883

भाषा : Urdu

श्रेणियाँ : शाइरी

उप श्रेणियां : मसनवी

पृष्ठ : 159

सहयोगी : सुमन मिश्रा

masnavi sahrul abrar jami
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लेखक: परिचय

मौलाना नूरुद्दीन अ’ब्दुर्रहमान नक़्शबंदी जामी सूबा-ए- ख़ुरासान के एक क़स्बा ख़र्जरद में 1414 ई’स्वी को पैदा हुए| इसी निस्बत से उन्हें जामी कहा जाता है। अगर्चे उनके वालिद निज़ामुद्दीन अहमद बिन शम्सुद्दीन हिरात चले गए थे मगर उनका अस्ल वतन “दश्त” (इस्फ़िहान का एक शहर) था| इसलिए उन्होंने पहले “दश्ती” तख़ल्लुस इख़्तियार किया। दौरान-ए- ता’लीम जब उनको तसव्वुफ़ की तरफ़ तवज्जोह हुई तो सई’दुद्दीन मुहम्मद काशग़री की सोहब त में बैठे। हज़रत जामी को नक़्शबंदी सिलसिले के मा’रूफ़ बुज़ुर्ग ख़्वाजा उ’बैदुल्लाह अहरार से गहरी अ’क़ीदत थी। उन्हीं से ता’लीम-ए-बातिनी और सुलूक की तक्मील की और ख़्वाजा की ख़ानक़ाह में जारूब-कश हुए| अवाएल-ए-उ’म्र ही में आप अपने वालिद के साथ हिरात और फिर समरक़ंद का सफ़र किया जहाँ इ’ल्म-ओ-अदब की तहसील की और दीनी उ’लूम, अदब और तारीख़ में कमाल पाया।तसव्वुफ़ का दर्स सा’दुद्दीन मुहम्मद काशग़री से लिया और मस्नद-ए-इर्शाद तक रसाई मिली। हज के लिए भी गए और दिमशक़ से होते हुए तबरेज़ गए और फिर हिरात पहुँचे। जामी एक सूफ़ी साफ़ी और अपने दौर के जय्यिद आ’लिम थे। आपका नाम सूफ़ियाना शाइ’री और ना’त-ए-पाक में बहुत बुलंद है। जामी हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा के बड़े आ’शिक़-ज़ार थे। तक़रीबन16 मर्तबा उन्हें हज्ज-ए-बैतुल्लाह और मदीना मुनव्वरा की ज़ियारत नसीब हुई। उनकी मशहूर तसानीफ़ मस्नवी यूसुफ़-ज़ुलेख़ा, लैला मज्नूँ, फ़ातिहतुश्शबाब , वासिततुल-अ'क़्द, ख़ातिमतुल-हयात, शर्ह-ए- मुल्ला जामी, शैख़ सा’दी की गुल्सिताँ के जवाब में एक नस्री किताब बहारिस्तान है। इस के अ’लावा सिल्सिलतुज़्जहब और ख़िरद- नामा-ए- सिकंदरी उनकी बहुत मशहूर किताबें हैं। अख़ीर उ’म्र में ये मज्ज़ूब हो गए थे और लोगों से बोलना तर्क कर दिया था। उसी हालत में 1492 ई’स्वी में हरात में उनका इंतिक़ाल हुआ|


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