aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
احمد ندیم قاسمی اردو ادب کے معروف ادیب، شاعر، افسانہ نگار، صحافی،نقاد اور خاکہ نگار ہیں۔جو اپنے ہم عصر خاکہ نگاروں میں ممتاز ہیں۔ پیش نظر ان کے 13 شخصیات پر لکھے گئے خاکوں کا مجموعہ "میرے ہمسفر" ہے۔ جس میں مولانا عبدالمجید سالک، مولانا غلام رسول مہر، مولانا چراغ حسن حسرت، سعادت حسن منٹو، ن، م راشد، فیض، سید ضمیر جعفری،امتیاز علی تاج،خدیجہ مستور وغیرہ ادبی شخصیات شامل ہیں۔ہر خاکہ ایسی قلمی تصویر پیش کرتا ہے جس سے ممدوح کی شخصیت اپنے متنوع رنگوں کے ساتھ قارئین کے سامنے آجاتی ہے۔ان کا انداز تجزیاتی ہے کہیں کہیں خاکہ نگار نے تحلیل نفسی سے بھی کام لیا ہے۔یہ خاکے ان کے شگفتہ اسلوب اور عمیق مشاہدات کے ساتھ اختصار اورجامعیت کی عمدہ مثال ہیں۔جو اپنی معنوی اور صوری حسن کے ساتھ موثر اور کامیاب ہیں۔
अहमद नदीम क़ासमी मुमताज़ तरक़्क़ी-पसंद शायर, अफ़्साना निगार और एक सफल सम्पादक के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने ‘फ़नून’ के नाम से एक अदबी रिसाला जारी किया जिसे आजीवन पूरी लगन के साथ निकालते रहे।
क़ासमी की पैदाइश 20 नवंबर 1916 को रंगा ,तहसील ख़ोशाब सरगोधा में हुई थी। अहमद शाह नाम रखा गया। आरम्भिक शिक्षा पैतृक गांव में हुई । 1935 में पंजाब यूनीवर्सिटी से एम.ए. किया। 1936 में रिफॉर्म्स कमिशनर लाहौर के दफ़्तर में मुहर्रिर की हैसियत से व्यवहारिक जीवन आरम्भ किया। 1941१ तक कई सरकारी विभागों में छोटी-छोटी नौकरियां करने बाद दिल्ली में उनकी मुलाक़ात मंटो से हुई।
मंटो उस ज़माने में कई फिल्मों के लिए स्क्रिप्ट लिख रहे थे, क़ासमी ने उन फिल्मों के लिए गाने लिखे लेकिन बदकिस्मती से कोई भी फ़िल्म रीलीज़ न हो सकी। पाकिस्तान की स्थापना के बाद अलबत्ता उन्होंने फ़िल्म “आग़ोश” “दो रास्ते” और “लोरी” के संवाद लिखे. जिनकी नुमाइश भी अमल में आई।
1942 में क़ासमी दिल्ली से वापस आ गये और इम्तियाज़ अली ताज के इदारे “दारुल इशाअ’त पंजाब लाहौर” में ‘तहज़ीब-ए-निसवां’ और ‘फूल’ का सम्पादन किया। क़याम-ए-पाकिस्तान के बाद पेशावर रेडियो में बतौर स्क्रिप्ट राईटर के अपनी सेवाएं दीं लेकिन वहां से भी जल्द अलग हो गये। 1947 में सवेरा के सम्पादक मंडल में शामिल हो गये। 1949 में अंजुमन तरक़्क़ी-पसंद मुसन्निफ़ीन (जनवादी लेखक संघ) पाकिस्तान के सेक्रेटरी जनरल चुने गये। अंजुमन की सत्ता विरोधी सरगर्मीयों के कारण क़ैद किये गये और सात महीने जेल में गुज़ारे। 1963 में अपनी साहित्यिक पत्रिका ‘फ़नून’ जारी किया। 1974 से 2006 तक मजलिस तरक़्क़ी अदब लाहौर के डायरेक्टर रहे। जुलाई 2006 को लाहौर में इंतिक़ाल हुआ।
कहानी संग्रह: चौपाल, बगोले, तुलूअ-ओ-ग़ुरूब, गिर्दाब, सैलाब, आँचल, आबले,आस-पास, दर-ओ-दीवार, सन्नाटा, बाज़ार-ए-हयात, बर्ग-ए-हिना, घर से घर तक, नीला पत्थर, कपास का फूल, कोह पैमा, पतझड़।
शेअरी मज्मुए: रिमझिम, जलाल व जमाल, शोला-ए-गुल, दश्त-ए-वफ़ा, मुहीत, दवाम, तहज़ीब व फ़न, धड़कनें, लौह ख़ाक, अर्ज़-ओ-समा, अनवर जमाल।
आलोचना: अदब और तालीम के रिश्ते, पस अलफ़ाज़, मअनी की तलाश।
Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi
Get Tickets