aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
औज लखनवी, मिर्ज़ा मोहम्मद जा’फ़र (1853-1917) लखनऊ के बाकमाल मर्सिया-गो मिर्ज़ा सलामत अ’ली ‘दबीर’ के साहबज़ादे थे। मर्सिया-गोई में वालिद की विरासत को रौशन किया। ग़ज़ल कम कहते थे मगर उस में एक रंग था।
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