aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
सैयद रफीक मारहरवी सन् 1908 में एटा, उत्तर प्रदेश के मशहूर कस्बे मारहरा में पैदा हुए। वह मशहूर शायर अहसन मारहरवी के पुत्र थे। रफीक मारहरवी ने उर्दू भाषा और साहित्य की अमूल्य सेवा की जिसमें हिंदुओं में उर्दू, बज़्म-ए-दाग, ज़बान-ए-दाग, चुप की दाद और फ़रयाद, क़िस्सा गुल ओ सनोबर आदि के नाम काबिले ज़िक्र हैं। उन्होंने अपने पिता अहसन मारहरवी की जीवनी और उनके कलाम का मजमुआ "जलवा ए अहसन" के नाम से प्रकाशित किया। सैयद रफीक मारहरवी के इल्मी और अदबी मज़ामीन मुल्क के मशहूर अदबी रिसालों और अखबारों में प्रकाशित हुए हैं। मिर्ज़ा दाग़ पर उनके द्वारा किया गया काम सराहनीय है और इस बिना पर उनको सफे अव्वल के दाग़ शनासो में शुमार किया जा सकता है। उनकी किताब हिन्दुओं में उर्दू अदबी हलकों में कद्र की निगाहों से देखी जाती है जो लगभग 200 हिंदू शायरों का तज़किरा है इसमें उन्होंने उर्दू ज़बान ओ अदब में हिंदुओं के योगदान पर भरपूर रोशनी डाली है और इस आम धारणा को नकारा है जिसके तहत उर्दू को सिर्फ मुसलमानों की ज़बान समझा जाता है। 24 मई 1967 में उनका देहांत हुआ।
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