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कन्हैया लाल कपूर हमारे समय के सबसे सफल व्यंगकार हैं। उनकी रचनाओं की संख्या बहुत अधिक है लेकिन प्रचुर लेखन के बावजूद उनका लेखन स्तर से गिरने नहीं पाता। कारण ये कि वो दृढ़ कलात्मक चेतना के मालिक हैं और जानते हैं कि उच्च स्तर का साहित्य किस तरह अस्तित्व में आता है।
कन्हैया लाल कपूर 1910ई. में लायलपुर के एक गाँव में पैदा हुए। लायलपुर पंजाब का एक ज़िला है और अब पाकिस्तान में शामिल है। यहीं एक प्राइमरी स्कूल में शिक्षा पाई। मोगा से इंटरमीडिएट और लाहौर से बी.ए व एम.ए की परीक्षाएं पास कीं। शिक्षा पूर्ण होने के बाद विभिन्न कॉलिजों में लेक्चरर और फिर प्रिंसिपल रहे। देश विभाजन के बाद फ़िरोज़पुर और मोगा में नौकरी की। वहीं निवास रहा। सन् 1980ई. में उनका निधन हुआ।
उनका अध्ययन बहुत व्यापक है। अंग्रेज़ी साहित्य के व्यंग्य और हास्य साहित्य से वो परिचित हैं। इसलिए वो उन सारी युक्तियों से भलीभांति परिचित हैं जिनसे हास्य व व्यंग्य में सौन्दर्य और प्रभाव पैदा होता है। उनका दायराकार भी बहुत विस्तृत है। वो मानव स्वभाव से भी अच्छी तरह परिचित हैं इसलिए वे इंसान की सार्वभौमिक कमज़ोरियों की बड़ी कामयाबी के साथ समझ लेते हैं और उनकी रचनाएँ समय व स्थान यानी वक़्त और मक़ाम से ऊपर उठ जाती हैं। हर ज़माने और हर स्थान के लोग उनकी रचनाओं से आनंद उठा सकते हैं और आगे भी आनंदित होते रहेंगे। फ़लसफ़-ए-क़नाअत, कामरेड शेख़ चिल्ली और इन्कम टैक्स वाले इसी तरह के लेख हैं।
कन्हैया लाल कपूर के व्यंग्य में तेज़ी भी है और नफ़ासत भी। उनका व्यंग्य तेज़धार वाले नश्तर की तरह बड़ी सफ़ाई से शल्य क्रिया करता है। उनका विषय साहित्य है। इसलिए वो आमतौर पर साहित्यिक विषयों को हास्य-व्यंग्य का निशाना बनाते हैं। जैसे “चीनी शायरी” और “ग़ालिब जदीद शोअरा की मजलिस में” मयारी लेख हैं। उनके लेखों में साहित्यिकता नज़र आती है। भाषा पर उन्हें महारत हासिल है। इसलिए साफ़ सुथरी ज़बान लिखते हैं। लेखन के आरंभिक दौर में उनकी भाषा ज़्यादा निखरी हुई नहीं थी मगर धीरे धीरे भाषा पर पकड़ मज़बूत होती गई। आख़री दौर के लेखों में सादगी और प्रवाह ज़्यादा है। उनकी हास्य रूचि बहुत सुथरी है। वो केवल लफ़्ज़ी उलटफेर या असमान भाषा और अभिव्यक्ति से हास्य पैदा नहीं करते बल्कि विचार और चरित्र के माध्यम से उसे उभारते हैं।
संग-ओ-ख़िश्त, शीशा-ओ-तेशा, चंग-ओ-रबाब, नोक-ए-नश्तर, बाल-ओ-पर, नर्म गर्म और कामरेड शेख़ चिल्ली उनके मशहूर संग्रह हैं।
Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi
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