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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

लेखक : मौलाना जलालुद्दीन रूमी

प्रकाशक : मुंशी नवल किशोर, लखनऊ, मुंशी नवल किशोर, लखनऊ

प्रकाशन वर्ष : 1947

भाषा : Urdu, Persian

श्रेणियाँ : शाइरी, अनुवाद, मुंशी नवल किशोर के प्रकाशन

उप श्रेणियां : मसनवी, शायरी

पृष्ठ : 258

अनुवादक : मोहम्मद यूसुफ़ अली शाह

सहयोगी : रामपुर रज़ा लाइब्रेरी,रामपुर

pairahan-e-yusufi
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पुस्तक: परिचय

"پیراہن یوسفی" اردو زبان میں ’مثنوی معنوی‘ کا مکمل منظوم ترجمہ ہے۔ جس کے مولف محمد یوسف علی شاہ بن محمد جلال الدین خان ملقب بہ بانکی میاں چشتی نظامی زنبیل شاہی گلشن آبادی ہیں، مترجم نے 1193 ہجری مطابق 1779 میں اپنے پیرومرشدعبدالرحیم شاہ درویش شاہجہان آبادی کی ایما پر پایۂ تکمیل کو پہنچایا۔ یہ ترجمہ شاہ عبدالرحیم شاہ درویش شاہجہانپوری کے لفظی ترجمہ سے استفادہ کے بعد انجام دیا گیا ہے۔ یہ ترجمہ چھ جلدوں میں ہے جو متن کے ساتھ شائع ہوئی ہیں۔ اس میں متن اور منظوم ترجمہ ایک ساتھ چلتا ہے۔ ترجمہ پر قدامت کا رنگ غالب ہے اس کے باوجودسلیس، رواں اور قابل فہم ہے۔ اس ترجمہ کو منشی نول کشور نے شائع کیا ہے۔

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लेखक: परिचय

पूरा नाम जलालुद्दीन रूमी. इनकी मसनवी को क़ुरआनी पहलवी भी कहते हैं. इसमें 26600 दो-पदी  छंद हैं , कहा जाता है कि निशापुर में इनकी भेंट प्रसिद्ध सूफ़ी संत शेख़ फ़रीदुद्दीन अत्तार से भी हुई थी.  फ़रीदुद्दीन अत्तार ने इन्हें अपनी इलाहीनामा की एक प्रति भेंट भी की थी.  रूमी की दो शादियाँ हुईं, जिनसे इन्हें दो बेटे और एक बेटी पैदा हुई थी.  विनफ़ील्ड के अनुसार रहस्यवाद में रूमी की बराबरी कोई नहीं कर सकता. रूमी शम्स तबरेज़ को अपना मुर्शिद मानते थे और उनकी रहस्यमयी मृत्यु के बाद उन्होंने अपने दीवान का नाम भी अपने मुर्शिद के नाम पर ही रखा. रूमी की मसनवी दुनिया भर में सबसे ज़्यादा पढ़ी जाने वाली किताबों में शुमार होती है|

प्रमुख रचनायें

१. मसनवी

२. दीवान-ए-शम्स तबरेज़

 

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