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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

लेखक : बरकतुल्लाह पेमी

संपादक : लछमी धर

संस्करण संख्या : 001

प्रकाशक : फ़रेंक ब्रादर्स एण्ड कम्पनी, दिल्ली

मूल : दिल्ली, भारत

प्रकाशन वर्ष : 1943

भाषा : English, Urdu

श्रेणियाँ : दर्शन / फ़िलॉसफ़ी, महिलाओं की रचनाएँ

उप श्रेणियां : महिलाओं द्वारा अनुदित

पृष्ठ : 219

सहयोगी : हिन्दुस्तानी एकेडमी, इलाहाबाद

pem prakash
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लेखक: परिचय

 

आपका नाम बरकतुल्लाह और लक़ब साहिबुल-बरकात था। 1660 ई’स्वी में क़स्बा बिलग्राम, हरदोई में विलादत हुई। अपने वालिद सय्यद उवैस और दीगर उ’लमा और औलिया के ज़ेर-ए-साया तर्बियत पाई। सूफ़ी मिज़ाज उनको अपने अज्दाद से विरासत में मिला था । उनके वालिद ने अपने विसाल से पहले ही उनको सज्जादा-नशीनी और सिलसिला-ए-आबाई की इजाज़त अ’ता फ़रमाई थी और ख़िलाफ़त भी बख़्शी थी। उनका तअ’ल्लुक़ चिश्तिया, सुहरवर्दिया और क़ादरिया सिलसिला-ए-तसव्वुफ़ से था। बरकतुल्लाह पेमी के दादा ने मारहरा को अपना वतन बनाया और वहाँ एक ख़ानक़ाह भी ता’मीर कराई। अपने वालिद के विसाल के बा’द बरकतुल्लाह ने मारहरा को अपना मस्कन बनाया और अपने दादा की ख़ानक़ाह में क़याम-पज़ीर हुए लेकिन कुछ शरारत-पसंद और शिद्दत-पसंद लोगों की हम- साएगी उनको पसंद न आई और क़स्बा से बाहर एक जदीद आबादी की बुनियाद डाली| और मस्जिद-ओ-ख़ानक़ाह की ता’मीर कराई। उस जदीद आबादी का नाम पेम नगर बरकात नगरी रखा। हालाँ कि अब मियाँ की बस्ती के नाम से मौसूम है। सय्यद शाह लुत्फ़ुल्लाह से उनको बे-हद अ’क़ीदत थी। ये अपने दौर के मशहूर-ओ-मा’रूफ़ आ’लिम और मुफ़क्किर थे। उनका भी तअल्लुक़ बिलग्राम से ही था। जब वो मारहरा तशरीफ़ ले गए तो कालपी के मशाइख़ से ग़ाएबाना अ’क़ीदत की वजह से उन्होंने कालपी का सफ़र किया और शाह फ़ज़्लुल्लाह काल्पवी से ख़िलाफ़त हासिल की और साहिबुल-बरकात का ख़िताब पाया। शाह बरकतुल्लाह तफ़्सीर, हदीस, फ़िक़्ह, मआ’नी, रियाज़ी, मंतिक़, फ़ल्सफ़ा और तारीख़-ओ-सियर में अपने ज़माना के एक जय्यिद आ’लिम थे। अदब, इंशा और शे’र-ओ-सुख़न में एक बुलंद-मर्तबा रखते थे। बे-मिसल शाइ’र थे। फ़ारसी और हिंदवी दोनों ज़बानों पर महारत हासिल थी। दोनों ज़बान में उनके कलाम मौजूद हैं। फ़ारसी में इ’श्क़ी और हिंदवी में पेमी तख़ल्लुस किया करते थे। उनका एक दीवान “पेम प्रकाश के नाम से मौजूद है। इस के अ’लावा फ़ारसी में दीवान-ए-इ’श्क़ी, चहार अन्वाअ’, रिसाला-ए-जवाब-ओ-सवाल, रियाज़ुल-आ’शिक़ीन, अवारिफ़-ए-हिन्दी, ब्याज़-ए-बातिन, ब्याज़-ए-ज़ाहिर, वसियत-नामा, रिसाला-ए-तक्बीर और तफ़्सीर-ए-सूरत उनकी दीगर तालीफ़ हैं। शाह बरकतुल्लाह का विसाल शब-ए-आ’शूरा 10 मुहर्रम 1729 ई’स्वी को मारहरा में हुआ और वहीं मद्फ़ून हुए।

 


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