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लेखक : डिप्टी नज़ीर अहमद

संस्करण संख्या : 001

प्रकाशक : मतबा इंस्टिट्यूट, अलीगढ़

मूल : अलीगढ़, भारत

प्रकाशन वर्ष : 1919

भाषा : Urdu

श्रेणियाँ : छंदशास्र

पृष्ठ : 35

सहयोगी : अब्दुर्रशीद

rasmul khat
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पुस्तक: परिचय

ڈپٹی نذیر احمد کے اِس رسالے کا مقصد مبتدیوں کو نیز اُن کے اساتذہ کو اردو لکھاوٹ کے اصول سکھانا اور خوش نویسی کی مشق بہم کرانا ہے۔رسم الخط کا مطالعہ بتاتا ہے کہ ڈپٹی نذیر احمد اردو حروفِ تہجی کو حروف کی خالی کشتیوں اور نقطوں میں تقسیم کرنے کے نظریے یعنی ghost character theory (gct) کے بنیاد گزار ہیں۔ اُن سے پہلے اردو حروفِ تہجی کی یہ والی تقسیم کسی مصنف کے ہاں نہیں ملتی کیونکہ اُن کا رسالہ اِس موضوع پر اردو میں پہلی باضابطہ مستقل تصنیف ہے۔ رسم الخط میں حروفِ تہجی کو وِند اور اوِندوا میں تقسیم کرنے کے ساتھ ساتھ عربی، فارسی اور اردو میں بھی تقسیم کیا گیا ہے تاکہ نہ صرف مبتدی بلکہ اساتذہ بھی اِن سے بننے والے الفاظ کے بارے میں جان سکیں کہ کون سا لفظ کس زبان کا ہے۔ رسم الخط میں ڈپٹی صاحب لکھائی کی مشقوں میں ایسے الفاظ لائے ہیں جن سے اساتذہ کو اُن کے معنی بتانا پڑیں اور طلبہ کو ہم آواز لیکن مختلف الاملا لفظوں (homophones) میں فرق معلوم ہوسکے۔ تعلیمی نفسیات کا یہ شاندار حربہ نہ صرف طلبہ کو سبق میں محو رکھتا ہے بلکہ استاد کو مطالعے اور سمجھانے کی کاوش پر بھی آمادہ کرنے والا ہے۔ رسم الخط کی اصل غایت حروف کو جوڑ کر لفظ بنانے کا ڈھنگ سکھانا ہے کیونکہ لفظی اور ابجدی دونوں طرح کے نظامہائے تحریر کا مجموعہ ہونے کی وجہ سے اردو تحریر کا ہر لفظ ایک مستقل فلمچے (visual gestalt) کے طور پر شناخت ہوتا ہے۔ رسم الخط کے مندرجات اور لکھائی کی مشقوں میں دیے گئے الفاظ کے بارے میں یہ بات بہت اہم ہے کہ ڈپٹی صاحب نے اپنے رسالے کو ہر لحاظ سے سیکولر رکھا ہے تاکہ کسی بھی مذہب کا استاد اِسے پڑھا سکے اور کسی بھی مذہب کا طالبِ علم اِسے پڑھ سکے۔ مثال لیجیے کہ بعض ناموں کے ہجے سکھانے کے لیے مسلمانوں کے ساتھ ساتھ ہندوؤوں اور انگریزوں کے نام بھی لکھے گئے ہیں تاکہ غیریت دور ہوسکے۔

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लेखक: परिचय

उर्दू में वह व्यक्ति जिसे पहला उपन्यासकार होने का गौरव प्राप्त है ,जिसने  महिलाओं के लिए साहित्य कि रचना की ,जिसने नारीवाद का आज्ञा पत्र सम्पादित कियाऔर इंडियन पेनल कोड का अनुवाद “ताज़ीराते हिन्द” के नाम से किया जो सरकारी मंडली में बहुत लोकप्रिय हुआ.उस व्यक्ति का नाम डिप्टी नज़ीर अहमद है. 

नज़ीर अहमद की पैदाइश 6 दिसम्बर 1836 को ज़िला बिजनौर में हुई.उनके पिता मौलवी सआदत अली अध्यापक थे.आरम्भिक शिक्षा अपने पिता से प्राप्त की.देहली के औरंगाबादी मदरसे में मौलवी अब्दुल खालिक़ से शिक्षा प्राप्त की.देहली के विद्यार्थी जीवन में पंजाबी कटरे की मस्जिद में रहते थे.उस ज़माने में दीनी मदारिस के ज़्यादातर छात्रों को बस्ती के घरों से रोटीयां लानी पड़ती थी नज़ीर अहमद को भी अपने  खाने का इंतेज़ाम इसी तरह करना पड़ा.कहीँ  से रात की बची हुई दाल तो कहीं से दो तीन सूखी रोटियां मिल जाती थीं.नज़ीर अहमद मौलवी अब्दुल खालिक़ के घर से भी रोटियां लाते थे जहाँ एक लड़की रोटी के बदले उनसे मसाले पिसवाती थी.और कभी कभी मसाला पीसने में सुस्ती की वजह से उंगली पर सिल का बट्टा भी मार देती थी. ख़ुद नज़ीर अहमद ने लिखा है कि;
“उधर मैंने दरवाज़े में क़दम रखा ,इधर उनकी लड़की ने टांग ली.जबतक सेर दो सेर मसाला मुझसे न पिसवा लेती न घर से निकलने देती न रोटी का टुकड़ा देती... ख़ुदा जाने कहाँ से मुहल्लेभर का मसाला उठा लाती थी .पीसते पीसते हाथोँ में गट्टे पड़ गये थे,जहाँ मैंने हाथ रोका और उसने बट्टे उंगलियों पर मारा,बखुदा जान सी निकल जाती थी.” यही लड़की बाद में नज़ीर अहमद की धर्मपत्नी बनीं.

मदरसे की शिक्षा के बाद नज़ीर अहमद ने दिल्ली कालेज में दाख़िला लिया,यहाँ उन्हें वज़ीफ़ा भी मिल गया. दिल्ली में 8 साल गुज़ारने के बाद नौकरी के सिलसिले में गुजरात पहुंचे. जहाँ 80 रुपये मासिक पर उन्हें नौकरी मिल गयी .इसके बाद तरक्क़ी करते हुए वह डिप्टी इंस्पेक्टर मदारिस हो गये. 1857 के इन्क़लाब में दिल्ली वापस आये. यहाँ से निज़ामे दकन ने उन्हें हैदराबाद बुला लिया, जहाँ उनकी तन्खवाह 1240 रुपये निर्धारित हुई.उन्हें दफ्तरों का मुआइना और कार्य क्षमता की विस्त्रित रिपोर्ट पेश करने की  ज़िम्मेदारी दी गयी.नज़ीर अहमद ने बहुत मेहनत और लगन से काम किया इसलिए उन्हें तरक्की मिलती गयी. वह सद्र तालुकेदार बन गये.उस दौरान उन्होंने निज़ामे दकन के बच्चों को पढ़ाने का भी  काम किया.

डिप्टी नज़ीर अहमद जब जालौन में थे तो उन्हें बच्चों के लिए कुछ किताबों की ज़रूरत महसूस हुई मगर वह उपलब्ध न हो सकीं तो उन्होंने ख़ुद बच्चों के लिए किताबें लिखनी शुरू कर  दिया.” मिरातुल ऊरूस” “मुन्तखिबुल हकायात” वगैरह उनकी अपने बच्चों के लिए लिखी हुई किताबें हैं.                                                                                                                                 
डिप्टी नज़ीर अहमद ने बहुत से नॉवेल लिखे जिनका उद्देश्य समाजसुधार था और उन नॉवेलों में ज़्यादा ज़ोर लड़कियों की शिक्षा दीक्षा और घर गृहस्थी पर था.उनके मशहूर नॉवेलों में ‘मिरातुल ऊरूस’, ‘बनातुन नअश’, ‘तौबतुन नसूह’, ‘फ़सानाए मुब्तला’, ‘इब्नुल वक़्त’, ‘अय्यामी’ और ‘रूयाए सादिका’ हैं.

‘मिरातुल ऊरूस’ उनका सबसे मशहूर नॉवेल है.जिसके पात्र अकबरी और असगरी आज भी बहुत महत्वपूर्ण हैं.यह नॉवेल जब प्रकाशित हुआ था तो हुकूमत ने एक हज़ार रुपये के ईनाम से नवाज़ा था.1869 में प्रकाशित होनेवाले इस उपन्यास को ज़्यादातर लोग उर्दू का पहला उपन्यास मानते हैं.

‘इब्नुल वक़्त’ भी नज़ीर अहमद का बहुत मशहूर नॉवेल है,जिसमें पाश्चात्य संस्कृति व सभ्यता के नक़ल करने पर व्यंग्य किया गया है.कुछ लोगों के खयाल में उसमें सर सय्यद अहमद खां कोहास्य का निशाना बनाया गया है.मगर डिप्टी नज़ीर अहमद ने इसको रद्द किया है क्योंकि वह ख़ुद सर सय्यद के आन्दोलन से न सिर्फ़ प्रभावित थे बल्कि सर सय्यद के मिशन के प्रचार व प्रसार के लिए हमेशा सक्रिय रहते थे.वह सर सय्यद के समस्त विचारधाराओं और परिकल्पनाओं के प्रशंसक थे और मुस्लिम एजुकेशनल कान्फ्रेंस के प्लेटफ़ॉर्म से महत्वपूर्ण राष्ट्रीय सेवाएँ भी सम्पन्न की हैं .डिप्टी नज़ीर अहमद ने उपन्यासों के अलावा जो अहम विद्वत्तापूर्ण काम किये हैं उनमें क़ुरान का अनुवाद ,क़ानुने इन्कम टैक्स,क़ानुने शहादत बहुत महत्वपूर्ण हैं.

डिप्टी नज़ीर अहमद की अधिकतर किताबें बहुत लोकप्रिय हुईं और उनकी किताबों का अंग्रेज़ी के अलावा पंजाबी ,कश्मीरी,मराठी,गुजराती,बंगला,भाषा वगैरह में अनूदित हुए .’मिरातुल ऊरूस’ का अनुवाद अंग्रेज़ी में 1903 में लंदन से प्रकाशित हुआ.

1884 में ‘तौबतुन नसूह’ का तर्जुमा सर विलियम म्योर की भूमिका के साथ प्रकाशित हुआ.  डिप्टी नज़ीर  अहमद की सेवाएँ बहुत विस्तृत हैं. उनकी साहित्यिक और पश्चिमी सेवाओं  को स्वीकारते हुए शम्सुल उलमा का ख़िताब दिया था.

आखिरी उम्र में डिप्टी नज़ीर अहमद पर फ़ालिज का हमला हुआ और 3 मई 1912 को दिल्ली में देहांत हुआ. 

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